मै जिन्दा हु यह सोच के सुकून मिलता है ! जिन्दा रहना मेरी मज़बूरी हो सकती है ! पर जिंदगी जीना मेरी जरुरत है ! इनसब से बढकर जिंदगी सवारना और सजाना मेरा कर्त्तव्य ! पर क्या सिर्फ इससे काम चल जायेगा ! मज़बूरी को उखड फेखो जरुरत को असलियत बनाओ !
इसीतरह समाज में रहना मेरी मज़बूरी हो सकती है ! पर समाज तो मेरी जरुरत भी है ! मज़बूरी छोड़ो जरुरत को पकड़ो ! ऐसा समाज बनाओ जो तुम्हे तुम्हारी जिंदगी से भी प्यारा लगे ! क्या बिना बाबासाहब और बुद्ध यह संभव है ! नहीं ना ! तो चलो आओ बाबासाहब और बुद्ध के पथ पर चलने वाला ऐसा समाज बनाये !
---प्रा. संदीप नंदेश्वर, नागपुर.
इसीतरह समाज में रहना मेरी मज़बूरी हो सकती है ! पर समाज तो मेरी जरुरत भी है ! मज़बूरी छोड़ो जरुरत को पकड़ो ! ऐसा समाज बनाओ जो तुम्हे तुम्हारी जिंदगी से भी प्यारा लगे ! क्या बिना बाबासाहब और बुद्ध यह संभव है ! नहीं ना ! तो चलो आओ बाबासाहब और बुद्ध के पथ पर चलने वाला ऐसा समाज बनाये !
---प्रा. संदीप नंदेश्वर, नागपुर.
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