Friday, 1 July 2011

शान से जीता रहा

शान से जीता रहा
 
सोचा था इन्सान हूँ
इन्सान बनकर जिऊंगा 
पल भर के लिए सही 
मानवता का पथ पढ़ूंगा 
जाने अनजाने में 
देश के हित में लडूंगा
कोई आये न आये
मै शांति मार्ग पर चलूँगा
पर....
हर वक्त मै तोडा गया 
बार बार मै लुटा गया
जाती, धर्म ने दिए जख्म
भरने की कोशिश करता गया
इससे उभरकर खुद की
पहचान बनाता चला गया
कुछ न मिलते हुए भी 
सबकुछ मिलाता चला गया
पथ में मेरे कांटे बिछाए गए 
मै अपने हक़ के लिए लढता गया    
फिर भी...
मै सदा अस्पृश्य कहलाता रहा 
जाती का शिकार होता रहा
उच्चशिक्षित होते हुए अशिक्षित होता रहा
जाने ऐसे कितने घाव सहता रहा
फिर भी शान से जीता रहा
संविधान का सहारा लेता रहा
गर्व से बाबा का वारीस कहलाता रहा
"बुद्धम शरणम" गाता रहा
"जय भीम"  के गीत गुनगुनाता रहा
---प्रा. संदीप नंदेश्वर, नागपुर. ८७९३३९७२७५

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