Friday 29 July 2011

जाती को उखाड़ फेको ! मानवता का स्वीकार करो !

जाती को उखाड़ फेको ! मानवता का स्वीकार करो ! 

जाती का घौसला बनाकर और बताकर ही तो कांशीराम ने अपनी राजनीती चलाई है ! आज मायावती भी वही कर रही है ! जातिगत राजनीती को बढ़ावा बी एस पी के कारण ही मिला है ! भारतीय राजनीती में जातिगत राजनीती का गन्दा खेल खेलते हुए बी एस पी ने यहाँ के बहुजनो को धोका दिया है ! बाबासाहब के जातिविहीन समाज रचना सिद्धांत को रोकने के लिए यह सबकुछ किया गया है ! बुद्धिस्ट भारत बनाने से रोकने के लिए यह किया गया है ! बाबासाहब का बढ़ता प्रभाव रोकने के लिए यह सब कुछ किया गया है ! जाती को बनाये रखकर अगर कोई विकास और न्याय की बात करता है तो मै समझता हु की वो सिर्फ एक छलावा है ! बाबासाहब ने न्याय की, विकास की, नैतिकता की राजनीति पर बल दिया था ! 
"डॉ अम्बेडकर से एक पत्रकार ने पूछा था कि बाबा साहेब एक तरफ तो आप जातिविहीन समाज बनाना चाहते हैं और दूसरी तरफ जातिआधारित आरक्षण का समर्थन , भला इन दोनों का क्या मेल ? बाबा साहेब ने कहा कि जाति एक ऐसा गन्दा दलदल हैं जिसे निकलने का अवसर मिला, वो इस दलदल को छोड़ कर जरुर भागेगा जिसमें वह वर्षो से सड रहा हैं !"
यह जो बात कही जा रही है वैसी ही बात कांशीराम अपने भाषण में करता है जो की सरासर गलत है ! कांशीराम कहते है की "बाबासाहब अपने नाम के सामने जाती का उल्लेख करते है ! ताकि उन्हें उनपर हुए अन्याय के बारे में हरवक्त याद रहे !" (सन्दर्भ :- मा. कांशीराम के भाषण, खंड १) और ऐसी कोई भी बात मेरे संशोधन कल में मुझे नहीं मिली. बाबासाहब जैसे महापुरुष को बदनाम करने का ऐसा गन्दा खेल आज खेला जा रहा है ! कांशीराम के द्वारा खेला गया है ! बाबासाहब जो इस जातिव्यवस्था के खिलाफ आन्दोलन की शुरवात १९२४ से ही करते है ! धम्म परिवर्तन की बात १९२४ में ही करते है ! तो वो क्यू अपनी जाती को बार बार दोहराएंगे ! उन्होंने तो सिर्फ अपने लोगो के हित के लिए लढाई लाधने के लिए यहाँ की जातिव्यवस्था का उल्लेख बार बार किया है ! पिछड़े लोगो को दलदल से निकालने के लिए उन्होंने जाती को पहला निशाना बनाया ! और अंतिमत: उसकी लढाई भी जित ली ! हमें बुद्ध धम्म देकर जातिव्यवस्था की जड़े खोकली कर दी ! लेकिन इन सभी जाती के महानुभावोंको उससे कोई लेना देना नहीं है ! इसलिए जाती को बनाये रखकर आज भी वो बाबासाहब की बात करते है ! यह बाबासाहब को दिया जाने वाला धोका है ! क्या हम आज भी उसी व्यवस्था में जी रहे है ! जाती का गणित अगर आज भी हमारे मन में पनप रहा है ! तो समझिये की आप बाबासाहब से गद्दारी कर रहे हो ! जो जो भी जाती के आड़ छिपाकर बाबासाहब की बात करता है ! वो मेरे नजर में ढोंगी और हरामी है !
चाहे राजनीती हो या समाजनीति या अर्थनीति जाती को छोड़ कर जबतक हम अपनी सोच को आगे नहीं बढ़ाते तबतक बाबासाहब का सपना सच नहीं हो सकता ! इसके लिए हमें आरक्षण को दुगनी गति से बढ़ाना होगा ! दबे, कुचले, पिछड़े हुए लोगो का कल्याण दुगनी तेजी से करना होगा ! वर्तमान में मिलाने वाली सहुलियतोंसे ज्यादा हमें उन्हें देना होगा ! ताकि जल्द से जल्द वो बराबरी पर आ सके ! तभी हम बाबासाहब के सपनों की व्यवस्था बना सकते है ! इसलिए हमें राजनीती के लिए जात को बनाये नहीं रखना है ! बल्कि लोगो के कल्याण के लिए आर्थिक और सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक लढाई लधानी होगी ! गिरती हुई सामाजिक व्यवस्था को बचाना होगा ! शिक्षा क्षेत्रो को अपने हाथ में लेना होगा ! अपनी शिक्षण संस्थाए खोलनी होगी ! हमारे एन जी ओ बनाने होगे ! व्यापार और उद्योग खोलने होंगे ! निजी क्षेत्र में बराबरी हासिल करनी होंगी ! तभी हम इस व्यवस्था का नक्षा बदल सकते है ! लोगो का कल्याण कर सकते है ! सांस्कृतिक धरोहर को बचा सकते है ! बाबासाहब के सपनो का भारत बना सकते है !--------प्रा. संदीप नंदेश्वर, नागपुर.

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