कलम की नोक
जी करता है हाथ में तलवार लू
पर ले नहीं सकता
डर लगता है लोग आतंकवादी कहेंगे
गुंडा, मवाली भी कहेंगे
मेरी कौम भी बदनाम होंगी
फिर सोचा शूरता भरे इतिहास को
दाग लगाना नहीं
बुजदीलो यह मत समझना डरपोक हु
बस भीम का बंदा हु
कलम की ताकत जानता हु
खून तुम बहाते हो बेगुनाहोंके
उसी खून की शाई से
हम लिखते है इतिहास
इन्सान की स्वतंत्रता का
क्योंकि हमारी कलम की नोक से
निकलते है अंगारे
यहाँ के मानव मुक्ति के
---प्रा. संदीप नंदेश्वर, नागपुर.
mastttttttttt ji
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