Sunday, 24 July 2011

बुजदीलो यह मत समझना डरपोक हु

कलम की नोक 
 
जी करता है हाथ में तलवार लू 
पर ले नहीं सकता 
डर लगता है लोग आतंकवादी कहेंगे
गुंडा, मवाली भी कहेंगे
मेरी कौम भी बदनाम होंगी
फिर सोचा शूरता भरे इतिहास को
दाग लगाना नहीं
बुजदीलो यह मत समझना डरपोक हु 
बस भीम का बंदा हु
कलम की ताकत जानता हु
खून तुम बहाते हो बेगुनाहोंके 
उसी खून की शाई से 
हम लिखते है इतिहास  
इन्सान की स्वतंत्रता का
क्योंकि हमारी कलम की नोक से   
निकलते है अंगारे
यहाँ के मानव मुक्ति के
---प्रा. संदीप नंदेश्वर, नागपुर.

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