कबतक सहेंगे हम इस दहशतवाद को ?
कल मुंबई में हुए बम्ब ब्लास्ट ने फिर एक बार मुंबई के जनजीवन को हिला दिया है ! "डर और जीने का जज्बा" इन विशेषताओंसे जी रहे मुंबई के लोग आज फिर एक बार वही जज्बा लेकर घर के बहार निकालेंगे ! लेकिन इसी खोज में की, आखिर क्यों हो रहा है यह बार बार ? कौन कर रहा है यह बार बार ? कौन है इसके पीछे ? कौन छिनना चाहता है जीना हमारा ? क्यों वो हमें जीने नहीं देता सुकून से ? कहा है हमारी सुरक्षा ? कहा गई सरकार की सुरक्षा एजंसी ? सरकार इन घटनाओंको रोकने में क्यों नाकाम हो रही है ? दिन भर इन सवालो के जवाब धुंडते धुंडते यह मुंबई का इन्सान श्याम को जब घर लौटता है ! तो घर वाले सुकून की साँस लेते हुए देख फिर एक बार अपने में एक नया जज्बा पैदा कर लेता है ! लेकिन दिन भर जिन सवालोंका जवाब धुंडने में जूता यह इन्सान अपनी सुरक्षा फिर एक बार सरकार पर छोड़ कर चैन की नींद सो जाता है ! सवालोंके जवाब नहीं मिल पाते ! दो तिन दिन बार बार मन में आ रही घटनाओंको भूल कर फिर एक बार मुंबई अपनी रफ़्तार पकड़ना शुरू कर देती है !
बिना काम की ये जिंदगी
क्या पता कब हो जाए लहूलुहान ?
चल आज की फिकर कर
क्या पता कल क्या हो जाए ?
इसी पंक्ति के साथ मुंबई में रहने वाला इन्सान अपनी रफ़्तार भरी जिंदगी जीता है !
चाहे कुछ भी हो जाये
जिंदगी से हारना नहीं
कसाब आये या आये साध्वी प्रज्ञासिंग
जित नहीं सकते जिंदगी की जंग
सलाम इस जज्बे को, सलाम इस जिंदगी को, सलाम उस इन्सान को, पर उन सवालोंका क्या हुआ ? क्या हम भूल गए ! नहीं भूल सकते ! जिंदगी की दौड़ में वो सवाल की खोज ही कही खो गई है ! पर उसे बार बार जगाता रहता है वो एक....मिडिया ?
मुंबई में हुए बम्ब ब्लास्ट में आज हर च्यानल यही सवाल उठा रहा है ! "आखिर कबतक सहेंगे हम ?" इस सवाल का जवाब हर एक इन्सान के पास है ? इन्सान ही सवाल है इस जवाब का ? हमें सहना होगा ! सहते रहना होगा ! तबतक जबतक इस इन्सान के मन में पल रही जाती और धार्मिकता की आग को हम जड़ से उखाड़ नहीं फेकते ! कही भी अगर बम्ब ब्लास्ट होता है ! तो पहले नाम आता है इस्लामिक दहशतवादी संघटनाओंका ! मिडिया भी नाम फैलता है इन्ही संघटनाओंका ! क्यों ? क्या यह हमारी कृति धार्मिक तेढ पैदा नहीं करती ! क्यों हम आज भी अपने मन में इस्लाम के प्रति घृणा पैदा किये हुए है ? बिना किसी खोज या ठोस पुरावे के बिना हम क्यों उन्ही का नाम लेते है ? क्या यह हमारी विषैली मानसिकता का प्रतिक नहीं है ? क्या हम भूल गए है की कुछ ऐसे ही बम्ब ब्लास्ट हमारे कहने वाले, हमारे साथ रहने वाले, गर्व से कहो हम.........? कहने वालोंने किये थे ? आज दहशत गर्द की कोई जात, कोई धर्म, कोई मजहब नहीं है ! वो हर इन्सान जो अपने मन में जी रहे इंसानियत को भूल कर, मन में पल रहे जाती एवं धार्मिक कट्टरताओंको बार बार उजागर कर रहा है ? आज देश में चल रही कुछ घटनाओंको, और देश में कुछ लोगो ने पैदा की हुई अस्थिरता को हम इस हादसे के साथ क्यों नहीं जोड़ सकते ?......ऐसे सवाल हमारे मन में क्यों पैदा नहीं होते ? क्यों हम अपने मन में एक ही कौम को दुश्मनोंके लिस्ट में नंबर १ पर क्यों रखते है ? घर के दुश्मन क्या दुश्मन नहीं होते ? ऐसी घटनाओंके बाद जो कुछ होता है वो एकतरफा ही क्यों होता है ? हम क्यों इंतजार नहीं करते पूरी छानबीन का ? क्यों हम अपने मन में पल रहे विषैले धर्मवाद को बहार लाते ! ताकि ये दुश्मनी और बढे ! और आनेवाले दिनों में फिर एक हादसा हो !आखिर सरकार रोके तो कितना रोके ! इतनी बड़ी संख्या में सुरक्षा लगाये तो कितनी लगाये ! हमारा कोई काम नहीं है क्या ? हमारी भी कोई जिम्मेवारी नहीं है क्या ? कबतक हम सिर्फ सरकार को दोषी मानकर कोसते रहे ? आखिर हम भी तो इस देश के एक सुरक्षा कर्मी है ! भारतीय होने के नाते !
हमें यह रोकना होगा ! भारत का हर सामान्य नागरिक इसे रोकना चाहता है ! पर ये तबतक नहीं रुक पायेगा जबतक हम अपने मन से जाती और धर्मवाद को उखाड़ कर नहीं फेंक देते ! वरना "आखिर कब तक सहेंगे हम"? इस सवाल का कोई जवाब नहीं होगा !
हमें यह रोकना होगा ! भारत का हर सामान्य नागरिक इसे रोकना चाहता है ! पर ये तबतक नहीं रुक पायेगा जबतक हम अपने मन से जाती और धर्मवाद को उखाड़ कर नहीं फेंक देते ! वरना "आखिर कब तक सहेंगे हम"? इस सवाल का कोई जवाब नहीं होगा !
सवाल आखिर सवाल ही रहेगा !
जबतक इन्सान इन्सान बन कर नहीं जीता !
जवाब तो हर कोई दे सकता है !
बशर्ते इंसानियत तुम्हारे मेरे मन में पनपनी चाहिए !
---प्रा. संदीप नंदेश्वर, नागपुर.
A very Well Argued Post On this blog.
ReplyDeleteI would like to thank Prof. Sandeep For his encouraging Write ups after each incident..
keep Writing