मै यहाँ और मेरे ब्लॉग में जो कुछ भी लिख रहा हु वो कायदे के दायरे में लिख रहा हु ! और हाँ सच्चाई लिख रहा हूँ ! फिर भी अगर किसी को आपत्ति है तो वो बेशक मेरे बारे में जानकारी ले सकता है ! अगर मेरे लिखने पर या मैंने जो कहा उसपर किसी को आपत्ति हो तो मेरे पास उन सब बातो के प्रूफ है ! बगैर प्रूफ के मै लिखता नहीं हूँ ! अधिक जानकारी के लिए मेरे से संपर्क कर सकते है ! कुछ लोगो की धमकिया भी मिल रही है ! लेकिन मै धमकियों से डरने वालो में से नहीं हूँ ! आप बेशक पुलिस या कोर्ट में जा सकते हो ! लेकिन कृपा करके धमकिया न भेजे ! वरना मै भी आपके खिलाफ कोर्ट और पुलिस थाने जा सकता हु ! आपत्ति है तो आमने सामने बैठकर उसका समाधान कर लेते है ! उसी में समझदारी है ! वरना मै कोई बेवकूफ नहीं हूँ ! जो आप लोगो की धमकियों से डरूंगा ! मेरी पूरी जानकारी मेरी प्रोफाइल में दी गई है ! कृपा करके उसका इस्तेमाल करे ! धन्यवाद् !
Sunday, 31 July 2011
फौलादी भीम बन्दे
फौलादी भीम बन्दे
रास्ता बड़ा कठिन है
पथरीला, काँटों भरा
पर श्यायद इस रस्ते को
यह मालूम नहीं
यहाँ के तलवे भी फौलादी है
मत सोचो ए रास्तो के काँटों और पत्थरो
की लहूलुहान कर देंगे पैरो को हमारे
जिस दिमाग में बाबासाहब बसते है
उनके पैरो में फौलाद की ताकत होती है
वो पैर जहा भी पड़े
पैर लहूलुहान नहीं होगा
बल्कि रस्ते को ही लहूलुहान कर देंगे !
हे पथरीले, काँटों भरे रास्तो...
इन फौलादी भीम बन्दों से न टकराओ...
चूर चूर होकर वीरान हो जाओगे !
---प्रा. संदीप नंदेश्वर, नागपुर.
रास्ता बड़ा कठिन है
पथरीला, काँटों भरा
पर श्यायद इस रस्ते को
यह मालूम नहीं
यहाँ के तलवे भी फौलादी है
मत सोचो ए रास्तो के काँटों और पत्थरो
की लहूलुहान कर देंगे पैरो को हमारे
जिस दिमाग में बाबासाहब बसते है
उनके पैरो में फौलाद की ताकत होती है
वो पैर जहा भी पड़े
पैर लहूलुहान नहीं होगा
बल्कि रस्ते को ही लहूलुहान कर देंगे !
हे पथरीले, काँटों भरे रास्तो...
इन फौलादी भीम बन्दों से न टकराओ...
चूर चूर होकर वीरान हो जाओगे !
---प्रा. संदीप नंदेश्वर, नागपुर.
Saturday, 30 July 2011
कांशीराम का पोस्टमार्टम :- पार्ट - १
कांशीराम का पोस्टमार्टम :- पार्ट - १
चलो आज आपको फिर एक सच्चाई से अवगत करता हु ! दलितों आधुनिक मसीहा कहे जाने वाले और खुद का अपने ही मुह से दलितों का मसीहा कहने वाला रामदौसिया (कांशीराम) इसके बारे में और एक सच्चाई आपके सामने रखने जा रहा हु ! "जय भीम" एक ललकार थी ! "जय भीम" एक क्रांति थी ! "जय भीम" एक लहर थी ! "जय भीम" उबलता हुआ खून था ! "जय भीम" इस अन्याय की व्यवस्था को तारतार करके चीरने वाली एक गूंज थी ! हर किसी के जबान में "जय भीम" का एक ही नारा गूंज ता था ! "जय भीम" सुनने वाला "जय भीम" कहने वाले से १० कदम दूर रहने की सोचता था ! इसलिए नहीं की उनके हाथ में तलवार थी या कोई शस्त्र ! इसलिए की उनके हाथ में और मुह में "जय भीम" के कलम की ताकत थी ! जिसे दुनिया में आज तक कोई हरा नहीं पाया था ! जिसे दुनिया का हर कोई विद्वान, हर कोई महापंडित अपना आदर्श मनाता था ! "जय भीम" के सामने नतमस्तक होता था ! वो "जय भीम" थे हमारे डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर उर्फ़ बाबासाहब आम्बेडकर !
पंजाब दा पुतर रामदौसिया (कांशीराम) ने अपने महाराष्ट्र के नौकरी के कार्यकाल में वो "जय भीम" की लहर देखी ! फिर उसे पता चला की ये "जय भीम" डॉ. बाबासाहब आम्बेडकर का खून है ! इसमें इतनी ताकत है ! तब तक उसे कुछ भी पता नहीं था ! डॉ. बाबासाहब आम्बेडकर का नाम तक नहीं जानने वाला यह बहुरुपिया महाराष्ट्र का "जय भीम" काफिला देख कर चौकन्ना रह गया ! मै यहाँ राजनीती की बात नहीं कर रहा हु ! यह कृपया ध्यान में रहे !
देखो कैसी विडंबना है ! १९५९ में पंजाब विश्वविद्यालय से मास्टर आफ सायंस करने वाला यह कांशीराम बहुरुपिया बाबासाहब को १९६९ तक नहीं जानता ! जब की जिस पंजाब में १९५७ के आम चुनाव में आर पी आय के ५ विधायक पंजाब अस्सेम्ब्ली में चुन कर आये थे ! तो क्या कांशीराम उस वक्त बेवकूफ था ! ग्रज्युएट बच्चा उस वक्त अपने राज्य के बारे में कुछ नहीं जानता ! जबकि पंजाब में एक अच्छी खासी मोवेमेंट उस वक्त बाबासाहब की चल रही थी ! मास्टर आफ सायंस पंजाब से करने के बाद भी मैंने जो ऊपर पंजाब की परिस्थिति बताई वो होने के बावजूत इस बहरूपियो को महाराष्ट्र में आकर बाबासाहब का नाम सुना ऐसा कहता है ? क्या जूते खाने लायक इन्सान से ये कोई कम है ? उस दौर में तो बाबासाहब को सिर्फ पूरा भारत ही नहीं बल्कि पूरा विश्वा जानता था ! लेकिन लोगो को बेवकूफ कैसे बनाया जाये यह अच्छी तरह से कांशीराम जानता था ! इसलिए इस बहुरूपिये ने महाराष्ट्र के लोगो को बेवकूफ बनाना शुरू किया ! इसमें यहाँ के लोगो का और यहाँ के कुछ मोवेमेंट के शिलेदारो का भी थोडा बहुत हाथ रहा है ! इन्होने अगर इस बहुरूपिये को तुल नहीं दिया होता तो आज इसका अस्तित्वा नहीं होता !
फिर इस बहुरूपिये को लगा की बाबासाहब के लोगो को सिर्फ "जय भीम" बोल कर भी अपने तरफ खिंचा जा सकता है ! इसलिए यह "जय भीम" लोगो में घुसपेठ करने लगा ! खुद को इसने बाबासाहब के मोवेमेंट का मसीहा कहना शुरू कर दिया ! और बार बार एक ही किताब का नाम लेकर लोगो को बेवकूफ बनता गया ! "Annihilation of Caste" यह एक ही किताब पढ़कर इस महाशय को पुरे बाबासाहब समझ गए ! जहा अनेक विद्वानों ने बाबासाहब के बारे में यह बताया है की, बाबासाहब को पुरे जीवन में भी अगर हम पढेंगे तो भी उनके सिद्धांतो को हम छु नहीं सकते ! और यह बेवकूफ जो मास्टर ऑफ़ सायंस होने के बाद भी बाबासाहब नहीं जानता था वो एक किताब पढ़कर बाबासाहब जन गया ! सोचो कितना बड़ा ढोंगी था यह रामदौसिया ?
फिर इसने मोवेमेंट के नाम पर लोगो को लुटना शुरू किया ! सबसे पहले इसका टार्गेट बना नौकर पेशा आदमी ! इसे मालूम था अगर इन लोगो को बेवकूफ बनाकर साथ लिया जाये तो यह खुद तो काम करेगा नहीं क्योंकि इसके पास नौकरी के अलावा वक्त नहीं होता ! पर यह बाबासाहब के नाम से मुझे पैसा दे सकते है ! हुआ वैसा ही इन लोगो ने इस रामदौसिया को पैसा देना शुरू किया ! और यह जाना भी नहीं की यह पैसा ये रामदौसिया कहा खर्चा कर रहा है ! १० साल तक महाराष्ट्र के नौकर पेशा लोगो को लुटाने के बाद पूरा पैसा लेकर यह रामदौसिया उत्तर प्रदेश भाग गया ! और कारन बताया की महाराष्ट्र के लोग गद्दार है ! भागने का जरिया होना था ! इसलिए इसने यह कहना शुरू कर दिया ! और जिन लोगो ने इसे पैसा देकर साइकल से उठाकर प्लेन में बैठाया उन लोगो को ही इसने गालिया देना शुरू कर दिया ! जाती के नाम से गालिया मारने लगा ! कुछ लोग जो उसके साथ काम कर रहे थे उन्होंने उसे विरोध किया तो उन्ही लोगो को फिर इसने "भड़वा" और "दलाल" कहना शुरू कर दिया ! इसकी हिम्मत तब बड़ी जब इसके जैसे ही बहुरूपिये इसकी हा में हा मिलाते गए ! इन लोगो का बाबासाहब की मोवेमेंट से कोई वास्ता नहीं था ! ऐसे लोगो ने कांशीराम को साथ दिया ! और फिर वही से कांशीराम का बाबासाहब को काउंटर करके खुद को मसीहा बनाने का सिलसिला शुरू हुआ ! तब इसके पास पैसा भी आया था ! बिना कमी का ! एक पहचान भी मिली थी ! महाराष्ट्र के पैसे के बदौलत इसने यु पी में चुनाव लड़े ! महाराष्ट्र के लोग बर्बाद होते गए और यह रामदौसिया अपनी (मायावती) के साथ सुकून की जिंदगी गुजारने लगा ! वही से शुरू हुआ "जय भीम" से "जय कांशीराम" का दौर ! और आज देखो बाबासाहब के बदौलत सब कुछ हासिल करने वाले भी रामदौसिया (कांशीराम) के हो गए ! जहाँ से "जय भीम" निकल गया ! और "जय कांशीराम" आ गया ! आंबेडकरी मोवेमेंत को सबसे बडा खतरा याही से शुरू हुवा ! क्या इसे रोका जन जरुरी नाही है ? क्या बाबासाहाब के पंक्ती मी बैठने कि औकात है इस चोर रामदौसिया (कांशीराम) की ? यह सब आपको सोचना है ! -----प्रा. संदीप नंदेश्वर, नागपूर.
टीप :- ************क्रमशः आगे भी पडते रहना कांशीराम का पोस्टमार्टम ! और भी की खुलासे होने अभी बाकी है ! आज के लिये इतनाही ! "जय भीम"
Subscribe to:
Posts (Atom)