Sunday, 19 June 2011

भविष्य को लेकर.....

भविष्य को लेकर.....

कल मै रोया था अपने वजूद को लेकर.....
आज भी रोता हु अपने भविष्य को लेकर.....

श्यायद मेरे कल में बाबा ने दिलाया रास्ता
आज तो हर कोई भटकाना चाहता है रास्ता
इसलिए.....
कल मै रोया था अपने वजूद को लेकर.....
आज भी रोता हु अपने भविष्य को लेकर.....

कल मै जीता अगर भेड़ बकरियोंकी जिंदगी
आज न दिखाई होती मुझे ये मेरी जिंदगी
पर....
कल मै रोया था अपने वजूद को लेकर.....
आज भी रोता हु अपने भविष्य को लेकर.....

सोचता हु क्यों हुआ ये आशियाना मंजर...
जिस जमीं पर उगलता था सोना, वो आज हुई बंजर...
तभी तो.....
कल मै रोया था अपने वजूद को लेकर.....
आज भी रोता हु अपने भविष्य को लेकर.....

जुदाई का गम सह सकते है मगर...
अपनों के गम में ही डूबा रहता हु हरदम...
क्या पता.....
कल मै रोया था अपने वजूद को लेकर.....
आज भी रोता हु अपने भविष्य को लेकर.....

निभाए वो हर वादे, दिलाया हौसला जीने का...
यहाँ तो हर कोई सोचता है, अपनों को लुटकर जीने का.....
श्यायद तभी.....
कल मै रोया था अपने वजूद को लेकर.....
आज भी रोता हु अपने भविष्य को लेकर.....

कल में तो मेरे, जन्म लिया था मसीहा ओ के मसीहा ने
आज तो हर कोई मसीहा की होड़ में खड़ा है.....
किसे बनाऊ मै आज का मसीहा...?
न है न होगा मेरे भीम जैसा मसीहा...
क्योंकि....
तब मै न रोया था अपने वजूद को लेकर.....
पर हाँ.....!
आज जरुर रोता हु अपने भविष्य को लेकर.....
---प्रा. संदीप नंदेश्वर, नागपुर, ८७९३३९७२७५

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