Saturday, 25 June 2011

भविष्य के साथ !

भविष्य के साथ !
 
यह कौनसा मंजर आया  
अपनों में यह कौन पराया आया
बिना जख्म दर्द तो सहे थे आज तक 
गहरे जख्म का दर्द आज तोहफे में मिला
लुटा दिया सबकुछ अपना समझ के
आज वही क्यों इतना पराया निकला
जिस भूमी में लहरा रहा था बोधिवृक्ष
वो भूमी आज खून की प्यासी क्यों है ?
लहूलुहान जिंदगी तड़प रही है !
शांति, अमन और सुरक्षा के खातिर
दिल में रहने वाले ने सोच समझकर  
पीठ पीछे छुरा घौप डाला !
मत पूछ गलती किसने की है ?
बाबा के गलियारोंमे सेंध लगा दी है ! 
तू क्यों बैठा है सत्ता की चाह में
तेरी सत्ता ने तो खुशनुमा जिंदगी
कर दी है बेजान, बंजर
पहले इन्सान बदल फिर सत्ता बदल
वरना तू भी होगा बरबाद
अपने वर्तमान और भविष्य के साथ !
---प्रा. संदीप नंदेश्वर, नागपुर.

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