बदलेगी सूरत......
'शैदाई' यूँ ही नहीं टपकते आसू आँखोंसे
जख्म गहरे होकर भी यूँ ही नहीं तड़पते
सितारे तो कई होंगे आसमान में
पर सूरज सी रोशनी यूँ ही नहीं मिलती
टूटते तारो को देखा है सभी ने
पर क्या टूटते इन्सान यूँ देखा है किसीने ?
खंडरो से निकलकर दुनिया की सोचो
यूँ ही बदलते नहीं चहरे पल भर में
ये समां एक हो जाए, इन्सान की धरती पर
पत्थर की जगह इन्सान हो जमी पर
बदलेगी सूरत इस जहाँ की चंद लम्हे बाकि है
बस एक गुजारिश तू साथ रहे हर पल
---प्रा. संदीप नंदेश्वर, नागपुर.
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