आइना
वो आइना जो मुझे मेरी तस्वीर से रूबरू करता है
वो आइना जो मुझे अच्छाई और बुराई में फर्क सिखाता है
वो आइना जो मुझे आज मेरी असलियत दिखाता है
वो आइना अचानक आज मुझसे सवाल पूछता है
वो आइना कहता है क्या किया तुने मेरे लिए ?
वो आइना कहता है किस कदर हर रोज सताया तुने ?
वो आइना कहता है क्यों तुने मुझमे दुनिया की तस्वीर को नहीं देखा ?
वो आइना कहता है तेरे सिवा किसी और ने इस आईने में क्यों नहीं देखा ?
वो लम्हा आज आया है दुनिया को तस्वीर दिखाने का
वो लम्हा आज आया है आईने में देख जीने की राह तलाशने का
वो लम्हा आज आया है औरो के सामने आइना रखने का
वो लम्हा आज आया है आईने को उसकी पहचान दिलाने का
कांच के बने आईने को टूटते देखा है हरदम
सालो से ये आईना इंसानी पहचान दिला रहा है हरवक्त
दुनिया के जुल्मो सितम में इस आईने ने रास्ता दिखाया तुम्हे
आज वक्त है उस आईने में भविष्य की जिंदगी सवार ने का
---प्रा. संदीप नंदेश्वर, नागपुर, ८७९३३९७२७५
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