Thursday, 8 September 2011

बुद्ध-ए-शांति

 
बुद्ध-ए-शांति
 
फिर एक धमाका मेरे घर पे हुआ 
इन्सान-ए-कब्रिस्तान ये समाज कैसे हुआ
जिस्म के टुकड़ो में कहराते हुए लोगो
शैतान-ए-गुलिस्तान ये देश कैसे हुआ
 
पल भर में बदला यहाँ गम का आलम
धर्म-ए-जेहाद तू पैदा कैसे हुआ
अच्छा होता गर सुनी होती उस माँ की कोख
जल्लाद-ए-भगवान तू इन्सान कैसे हुआ
 
रहमतगार को मानने वाले अल्ला के बन्दे
इस्लाम-ए-जेहाद तू बदनाम कैसे हुआ !
मानव से ज्यादा भगवन पैदा करने वाले
हिंद-ए-जेहाद तू मसीहा कैसे हुआ !

हिंद हो या इस्लाम दहशत न बाटे इन्सान
दुश्मनों-ए-अमन और शांति के, इन्सान से ऊँचा धर्म कैसे हुआ !
मजहब के नाम से चिल्लाने वाले दरिंदो
खून का प्यासा तेरा भगवान कैसे हुआ !

सिखों मेरे इंसानी शक्ल के शैतानी जानवरों
धम्म-ए-बुद्ध में मानव ही पैदा हुआ !
अशांति की बेरहम दुनिया में ; प्यार, मोहब्बत, समता के दुलारे
बुद्ध-ए-शांति का सन्देश ही सबको प्यारा हुआ ! 
 
बुद्ध की तलवार से ख़त्म कर दू मै तेरी
दुश्मन-ए-इंसानी दहशतगर्द की गतिविधिया
कलम की नौख से उखाड़ दो ए-संदीप,  इन हैवानी ताकतों को
ताकि शान-ए-शौखत से जीता रहे ये देश और इन्सान 

---प्रा. संदीप नंदेश्वर, नागपुर, ८७९३३९७२७५, ९२२६७३४०९१
 

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