ध्येय की तरफ
मै आज बर्बरता भरी दुनिया के
दलदल में फंस चूका हु !
कभी अनजाने में खुद
बनाये जंजीरों में जकड चूका हु !
खुद अपने निशान
अपनेही रास्ते से मिटा चूका हु !
बेबस नहीं तो और क्या ?
खुद की हस्ती मिटते देख कर भी
आँखों पर पट्टी बांध चूका हु !
सच कहते है दुनिया वाले
"नेकी करो जूते खाओ"
भलाई की राह में आज
मै खुद को मौत के मुह में
फसाते चले जा रहा हु !
पर यह दिन बदलेगा
वक्त भी बदलेगा
आज वक्त उनका है
कल वक्त मेरा होगा
इसी सोच में मेरे कदमों को
ध्येय की तरफ बढ़ाते चला जा रहा हु !
---प्रा. संदीप नंदेश्वर, नागपुर. ८७९३३९७२७५
मै आज बर्बरता भरी दुनिया के
दलदल में फंस चूका हु !
कभी अनजाने में खुद
बनाये जंजीरों में जकड चूका हु !
खुद अपने निशान
अपनेही रास्ते से मिटा चूका हु !
बेबस नहीं तो और क्या ?
खुद की हस्ती मिटते देख कर भी
आँखों पर पट्टी बांध चूका हु !
सच कहते है दुनिया वाले
"नेकी करो जूते खाओ"
भलाई की राह में आज
मै खुद को मौत के मुह में
फसाते चले जा रहा हु !
पर यह दिन बदलेगा
वक्त भी बदलेगा
आज वक्त उनका है
कल वक्त मेरा होगा
इसी सोच में मेरे कदमों को
ध्येय की तरफ बढ़ाते चला जा रहा हु !
---प्रा. संदीप नंदेश्वर, नागपुर. ८७९३३९७२७५
No comments:
Post a Comment