जात न पूछो मेरी
जात न पूछो मेरी
तमाचे के सिवा और कुछ नहीं है !
जब भी जिक्र होता है जात का
मेरी रगों में खून दौड़ने लगता है !
छाट डालू ! वो हर जबान को
जो जाती में बाटते इंसानी जिंदगी
फिर न पूछना जात मेरी
इंसानी कौम से वास्ता है !
पहचान मेरी इन्सान है !
जिंदगी मेरी इंसानियत !
खून है आखिर इन्सान का
फिर खून को उबालने की कोशिश मत करना
वरना तेरी पैदाइश चरित्रों में बदल दूंगा !
---प्रा. संदीप नंदेश्वर, नागपुर, ८७९३३९७२७५
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