कौन है ?
वो कौन है जो बारबार तंग कर रहा है
पास होकर भी दूर रहने की गुजारिश कर रहा है
जब भी बढ़ता है काफिला मेरे घर के तरफ
न जाने गुमशुदा होकर बिखर जाता है
कही अंधेरो के सहारे उजाले को बिखरते देखा है
पर परछाईयोंसे भला सूरज को डरते पहली बार देखा है
आओ चले खोज निकाले मन में छिपे अंधकार को
आत्मविश्वास ही काफी है बढ़ते हुए कदमों को
फिर एक बार मैंने खुद को आईने में देखा है !
---प्रा. संदीप नंदेश्वर, नागपुर, ८७९३३९७२७५
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