Friday, 25 November 2011

थप्पड़

 
थप्पड़

थप्पड़ की गूंज चारो और सुनाई गई,

अब लगता है हर ससुराल में आग लग गई,
मायके वाले भी कुछ कम नहीं थे,
शरद की राह में वसंत की सारी जिंदगी गुजर गई...
अब तो पुरे बाराती भर भर के आयेंगे,
बैंड बाजा भी साथ लायेंगे...
ढोल पे एक के बजाये बार बार बजायेंगे...
क्योंकी उंगलियों के निशान से सारी कायनात लाल हो गई...
---प्रा. संदीप नंदेश्वर, नागपुर.

1 comment:

  1. शरद पवार में अगर थोड़ी सी भी शर्म बची है तो घर बैठ जाये या मर जाए

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