Monday, 1 August 2011

आंबेडकरी मुव्हमेंट को सफलता दिलाने का मास्टर प्लान :- भाग १ (प्रथम चरण)


आंबेडकरी मुव्हमेंट को सफलता दिलाने का मास्टर प्लान :- भाग   (प्रथम चरण)
बाबासाहब और बुद्ध का अनुयायी बनाना होगा !
आप सभी को मेरा सप्रेम जय भीम !

काफी दिनों से यह बात रुकी हुई थी ! कल हमारे कुछ फेसबुक मित्रोंसे फोन पर रात को बात हुईकाफी विस्तार से चर्चा हुई ! तब पता चला की हमारे लोगो को कुछ प्लान देना जरुरी है ! इस विषय पर काफी सोचने के बाद आखिर कर मै इस विषय में लिखने के लिए तैयार हुआ हूँ ! इसका लाभ हर वो इन्सान जो बाबासाहब की बात करता है ! उसे हो सकता है ! मै जो भी बता रहा हु वोही सच है ! ऐसा कृपा करके सोचे ! जो भी मै बताऊंगा वो अपनी सोच के आधार पर वास्तविकता की कसोटी पर समझ लीजिये और परख लीजिये ! इस प्लान की शृखला में सबसे पहले मै जो प्लान बताने जा रहा हु वो बहोत ही जरुरी है ! उसके सिवा हम आगे नहीं बढ़ सकते !

बाबासाहब और बुद्ध का अनुयायी बनाना होगा !

हम लोग देख रहे है की आजकल अपने लोगो में ही संघर्ष होता दिख रहा है ! हर कोई अपनी तरीकेसे आन्दोलन को समझ रहा है ! और उसी तरह से उसे सामने रखना चाहता है ! पर क्या इससे आन्दोलन को सफलता मिल पायेगी ! मुझे लगता है की इससे सफलता नहीं मिल सकती ! आज जो परिस्थितिया अपने लोगो में पैदा हुई है उसकेलिए यही बात ज्यादा महत्वपूर्ण है ! हमने अपनी तरीकेसे, अपने हिसाब से आन्दोलन करना चाहा ! कोई किसीकी सुनने के लिए तैयार नहीं है ! हर किसी को लगता है की मै जो कहता हु वही सही है ! पर कोई भी उसे तर्क के आधार पर, विचारोंके आधार पर नहीं सोच रहा ! मै तो ये कहूँगा की हर किसी में बाबासाहब और बुद्ध के प्रति आस्था है ! पर सिर्फ आस्था होने से काम नहीं चलेगा ! हमें उन विचारो पर चलाना सिखाना होगा ! तभी हम बाबासाहब के आन्दोलन को सफलता दिला सकते है ! इसके लिए पहले हमें पहले बाबासाहब और बुद्ध का अनुयायी बनना होगा ! जिसके लिए हमें कुछ जरुरी चीजे खुद में बदलनी होगी ! और कुछ नियम बनाने होंगे ! समाज के लिए नहीं ! आन्दोलन के लिए भी नहीं ! बल्कि इन्सान के लिए ! वो इस प्रकार है !
.     बाबासाहब और बुद्ध को समझाना इतना आसान नहीं है ! पर मुश्किल भी नहीं है ! इसके लिए पहले हमें बाबासाहब और बुद्ध के तत्वज्ञान को पढ़ना होगा ! अब इसमें एक दिक्कत है ! की कौनसा साहित्य पढ़ना होगा ! क्योंकि साहित्य में भी काफी कुछ प्रतिक्रांतिया हुई है ! इसलिए बाबासाहब को पढ़ते वक्त हमें महाराष्ट्र सरकार और भारत सरकार ने जो साहित्य प्रकाशित किया है वो पढ़ना होगा ! हमारे लिए वो साहित्य ही ज्यादा महत्वपूर्ण है ! की किसी ने लिखा हुआ !
.     बुद्ध के तत्वज्ञान को समझाना है तो पहले और अंतिम बाबासाहब ने लिखी हुई "बुद्ध और उनका धम्म" यह किताब जो पीपल्स एजुकेशन सोसाइटी ने प्रकाशित की थी वो ही पढ़ना होगा ! वो किताब जैसी की वैसी Writing and Speeches, Vol - 11 में  आई है ! बुद्ध तत्वज्ञान को समझना है और सही बुद्धिझम को अगर समझाना है तो हमारे लिए बाबासाहब की "बुद्ध और उनका धम्म" यह प्रथम और अंतिम होनी चाहिए ! तभी हम सही बुद्धिझम पहचान सकेंगे !
.     बाबासाहब ने लिखा हर वो सिद्धांत, हर वो वाक्य हमें तत्कालीन परिस्थितिया और आज की वास्तविकता की कसोटी पर परखना होगा ! बाबासाहब की हर बात एक दुसरे से मेल खाती है ! इसके लिए हमें सोच समझकर पढ़ना और समझना होगा !
.     भाषण में सुने हुए बाबासाहब अपनाने से अच्छा किताबो के बाबासाहब समझाना और अपनाना होंगा ! क्योंकि मैंने कई ऐसे उदाहरण देखे है जो की भाषण में बताये जाते है ! पर बाबासाहब को पढ़ने के बाद वो कुछ और ही होते है ! तो इसलिए हम जो भी सुनते है वो सही है या गलत इसकी परख करनी होगी !
.     किसी ने लिखी हुई बात अगर वो सन्दर्भ और तर्क के आधार पर है तो उसे मानना होगा ! अगर वो सन्दर्भ और तर्क बाबासाहब को जैसे के वैसे कोट करते है तो !
.     सच्चाई को स्वीकार करना होगा ! बाबासाहब के हर सिद्धांत को मानना होगा ! वही हमारा प्रमाण और आदर्श होना चाहिए ! की किसी ने बाबासाहब के नाम से अपना सिद्धांत बनाया है और उसे हम मान लेंगे !
.     परिस्थितियों में बदलाव आया है ! बाबासाहब के कल की परिस्थिति और आज की परिस्थितियों में काफी कुछ फर्क है ! ऐसा कहना सिर्फ एक छलावा है ! जो लोग रस्ते से भटकना और भटकना चाहते है वही लोग ऐसी बाते करते है ! मै यह समझता हु की परिस्थितियों में बदलाव बिलकुल ही नहीं है ! परिस्थितिया वही है ! बस उसका चेहरा और नीतिया बदली गई है ! यह हमें जानकर बाबासाहब जैसे के वैसे अपनाने होंगे !
.     किसी का विरोध किसी ने किया है ! तो वो क्यों किया और किस आधार पर किया है ! इसको भी परखना होगा ! चाहे वो अपना रहे या पराया !
.     हमारी आस्थाओंका विभाजन हुआ है ! वो हमें  बदलना होगा ! हमारी आस्था सिर्फ और सिर्फ बुद्ध और बाबासाहब में होनी चाहिए ! अगर आपको लगता है की बाबासाहब और बुद्ध की क्रांति और विचार यहाँ की परिस्थितिया बदल सकती है ! तो होने वाली अपनी आस्थाओंका विभाजन रोकना होगा ! बुद्ध और बाबासाहब से कोई बढाकर ही हुआ था और ही होगा यह हमें जानना होगा !
१०.     बाबासाहब से किसी व्यक्तित्व की तुलना करते वक्त कही बाबासाहब वह से कम हो रहे है क्या ? इसकी खबरदारी भी लेनी होगी !
११.     जब दुनिया ने बाबासाहब और बुद्ध को माना है और उन्हें सबसे ऊपर का स्थान दिया है ! तो हम और तुम कौन होते है ! जो इनके साथ किसी गैर की तुलना करने वाले !
१२.     यहाँ और एक बात समझनी होंगी वो यह की बाबासाहब और बुद्ध को किसी व्यक्तित्व के रूप में स्वीकार करते वक्त हम उस विचार को, तत्वज्ञान को स्वीकार रहे है ! यह ध्यान में रहे ! व्यक्ति पूजा बुद्ध और बाबासाहब के विचारो में गौण है ! यह समझ लो ! बाबासाहब ने भी इसका कठोरता से विरोध किया था ! अगर मै सही हु तो हमें बाबासाहब और बुद्ध के विचारधारा के साथ कोई भी व्यक्तित्व मेल नहीं खाता !
१३.     अगर कोई बाबासाहब और बुद्ध के विचारो का बुरखा पहने हुए इस विचारधारा को स्वार्थ के लिए इस्तेमाल कर रहा है ! तो ऐसी प्रवृति का निषेध हर वो आंबेडकरी व्यक्ति ने करना चाहिए ! कृपा करके उसे सफलता का अमलीजामा पहनाये ! उनकी सफलता व्यक्ति की हो सकती है ! समूह की नहीं ! यह समझ ले !
१४.     नैतिकता और सदाचार यह इस विचारधारा की आत्मा है ! उसे बनाये रखे ! अपने और अपने लोगो की कृतित्व को इन्ही आधार पर परखना होगा !
१५.     इस विचारधारा में आने वाले हर वो क्षेत्र में एक ही नियम हमें लागु करना होगा ! और वो है बुद्ध और बाबासाहब ! अगर कोई अपने स्वार्थ के लिए यह क्षेत्र अलग है और इसमें वो लागु नहीं होता ऐसा कह रहा है ! तो समझ लो की वो बाबासाहब और बुद्ध को धोका दे रहा है ! क्या आप ऐसा करोगे ?
१६.     जीवन में बाबासाहब ने दी हुई २२ प्रतिज्ञा को महत्व देना होगा ! २२ प्रतिज्ञा पर कोई सवाल करे ! बस वो ही हमारी नियमावली है ! यह ध्यान में रखे !
१७.     कौन क्या करता है उससे ज्यादा हम क्या करते है इसपर बल देना होगा ! बाबासाहब के सिद्धांतो को लागु करते हुए जो काम कर रहा है ! उसे स्वीकारना होगा ! पर ध्यान रहे स्वार्थ और बाबासाहब के सिद्धांतो को तोड़ मरोड़ कर किया हुआ काम आंबेडकरी तत्वज्ञान में नहीं आता !
१८.     जाती को छोड़ हमें विचारोकी लढाई लढनी होगी ! हमें जात नहीं विचार चलाना है ! हमें जात नहीं विचार अपनाना है !
१९.      जो विज्ञानं को मानता है वो बुद्ध और बाबासाहब का अनुयायी, जो अपनी बुद्धि को तर्क की कसोटी पर रखकर सही और गलत की पहचान करता है वो बुद्ध और बाबासाहब का अनुयायी, जो मानव को मानव समान मानते हुए मानवतावाद को मानता है वो बुद्ध और बाबासाहब का अनुयायी ! इस सिद्धांतो पर ही हमें अनुयायी बनाने होंगे !
२०.     कृपा करके किसी को भी जाती, धर्म, नस्ल से बुद्ध और बाबासाहब का अनुयायी माने तो अच्छा होगा !

उपरोक्त सभी बात पर अगर हम गहनता से विचार करते है ! और वो खुद में लाने की कोशिश करते है ! तो मै समझता हु की हमें बुद्ध और बाबासाहब के अनुयायी कहलाने में गर्व महसूस होगा ! आशा करता हु की हम इस प्लान के तहत दी गई कुछ बातो को अपनी बुद्धि की बल पर परख कर स्वीकार करे ! अगर कोई बात आपको लगती है की वो इस प्लान के तहत बाबासाहब और बुद्ध के तत्वज्ञान में नहीं आती तो कृपा करके आप सुझाव दे सकते है ! अंतिम प्लान आपका ही होगा ! हम बुद्ध और बाबासाहब के विचार और सिद्धांत के अनुयायी बने इससे बड़ा कोई और प्लान नहीं हो सकता ! आप सभी को मेरा क्रांतिपूर्व "जय भीम".
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प्रा. संदीप नंदेश्वर, नागपुर.

क्रमशः  इस प्लान के शृंखला मालिका में आगे राजनीती, शिक्षा, अर्थ, समाज, संस्कृति, धर्म, व्यवस्था, सत्ता, तत्वज्ञान इस अभी विषयोपर प्लान दिए जायेंगे !
आपके सुझाव आमंत्रित है

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