Wednesday, 3 August 2011

आरक्षण : कहीं सवाल पर बेतुका जवाब

आरक्षण : कहीं सवाल पर बेतुका जवाब 
 
आजकल आरक्षण के मुद्दे पर बढ़ी भहस छिड़ चुकी है ! प्रकाश झा के फिल्म से इसमे और भी घी डालने का काम किया है ! सुप्रीम कोर्ट ने भी आरक्षण एक कड़वी सच्चाई है ऐसा ऐलान भी कर दिया है ! इस लिए किसी ने इसका विरोध नहीं करना चाहिए ! आरक्षण है और रहेगा जबतक समाज में फैली असमानता की स्थिति दूर नहीं होती ! और मुझे तो लगता है की यहाँ की पूंजीवादी, मनुवादी, जातिवादी, जमात यहाँ की असमानता को कभी भी समानता में बदलने के लिए प्रयास नहीं करेंगे ! बल्कि यही असमानता उनके अस्तित्व की कड़ी है ! यही अगर ख़त्म हो जाए तो फिर तो यह बचेंगे ही नहीं ! समानता लाने से इनका अस्तित्व खतरे में है ! इसलिए जबकभी इन्हें लगता है की हजारो सालो से दबा कुचला समाज हमारी बराबरी कर हमसे  आगे निकालने की कोशिश कर रहा है तब ये लोग आरक्षण के खिलाफ अपनी फुंगी बजाना शुरू कर देते है ! और इनका पहला शिकार होती है आज की  युवा पीढ़ी ! जिन्हें सामाजिकता की कोई भावना नहीं है ! पैसा और हौदे के पीछे भागने वाली यह आधुनिक पीढ़ी एकदुसरेको रौंदकर आगे बढ़ने की कोशिश करती है ! उस वक्त मै बड़ी गहरी सोच में होता हु जब इस पीढ़ी के असामाजिक विचार एक दूसरेको रौंदने के विचारो को बल देती है ! आने वाले  भविष्य  में यह पीढ़ी इस समाज को और सामाजिक सच्चाईयोंका सामना कैसे  करेगी ?
 
हर किसी को मालूम है की आज एक तरफ खाने के लाले पढ़े है ! तो दूसरी तरफ पैसो के गोदाम सढ़ रहे है ! विषमता दिनोदिन तेजिके साथ बढाती जा रही है ! फिर भी हमारा समाज इतना बेबस क्यों है ? ये आज भी उसी सढ़ी मानसिकता के गुलाम क्यों बन रहे है ? यह क्यों नहीं चाहते की बराबरी का समाज बन सके ? उसके लिए अगर पिछड़े हुए लोगो को आरक्षण देना पढ़े तो इसके लिए ये तैयार क्यों नहीं है ? बल्कि वो भी अपनी सफाई में दुहाई देते है की जाती के आधार पर नहीं तो आर्थिकता के आधार पर आरक्षण देना चाहिए ! जबकि सच्चाई यह है की आज भी यहाँ की बहुजन जातीय उतनी ही पिछड़ी हुई है ! जितना की ५० साल पहले थी ! क्या इन्हें मालूम नहीं की १०० रु. की नोट देकर मनचाहा उत्पन्न प्रमाणपत्र बनाया जा सकता है ? इसलिए आप लोगो से, जो आरक्षण के किलाफ़ है उनसे, आरक्षण के समर्थकोंसे, सरकार से, आर टी आय कार्यकर्तओंसे और सभी भारत के नगरिकोंसे मै कुछ सवाल करता हु !
 
१.   सरकारी नौकरियों में जाती के आधार किस जाती का कितना प्रतिनिधित्व  है ?
२.   सरकार की नौकरियों के हर स्तर पर यहाँ के प्रत्येत जाती की स्थिति क्या है ?
३.   सरकारी संस्थाओं में जातिगत हुक्मरानों की संख्या क्या है ?
४.   सरकारी शिक्षण संस्थाओ में जातिगत संख्या कितनी है ?
५.   सरकार के अनुदान पर चलने वाले शिक्षण संस्थाओ में जातिगत स्थिति क्या है ?
६.    विदेश सेवा में काम करने वाले लोगो की जातिगत स्थिति क्या है ?
७.   प्रशासनिक सेवाओ में काम करने वाले लोगो की जातिगत स्थिति क्या है ?
८.   शिक्षण संस्थाए जो सरकार के अनुदान से चलाई जा रही है वो किस समाज के पास कितनी है ?
९.   सरकार से गैर सरकारी संस्थाओ को दिया जाने वाला अनुदान पिछले १० सालो में किस किस संस्थाओ को दिया गया ! और उन संस्थाओ में समाज के कितने लोगो की कितनी हिस्सेदारी है ?
१०.   खाजगी क्षेत्र में दिए जाने वाले सरकारी टेंडर पिचले १० सालो में कितने लोगो को दिए गए ? वो संस्थाए कोनसी है ? (विभागो के अनुसार)
११.   खाजगी क्षेत्र में दिया जाने वाला सब्सिडी अनुदान पिचले १० सालो में किस किस लोगो को दिया गया ? कितनी संस्थाओ को दिया गया ? और उसमे जातिगत भागीदारी कितनी है ?
१२.   संसद में चुने गए सदस्यों में से खुले संसदीय क्षेत्र से चुने गए लोगो में से किस जाती का कितना प्रतिनिधित्व है ?
१३.  खुले प्रवर्ग में से देश के प्रशासकीय नौकरियोमे चुने गए लोगो की जातिगत स्थिति क्या है ?    
१४.  सालाना उत्पन्न में हर जाती की स्थिति क्या है ? उनका सरासरी सालाना उत्पन्न कितना है ?
१५.  देश की सभी विभागों में दिए गए आरक्षित सीटे पूरी तरह से भर दी गई है ? कितनी सीटे खाली है ? और वो क्यों नहीं भरी जा रही है ?
१६.   विभागों में आरक्षण का ब्याक्लाग कितना है ? और वो क्यों बढ़ा है ?
 
मुझे लगता है इन सभी सवालोंके जवाब हमें लेने होंगे ! जबतक इन सवालोंके जवाब नहीं मिलते तबतक आरक्षण के खिलाफ न बोले वो अच्छा है ! आरक्षण ख़त्म करना याने नई व्यवस्था बनाना ! फिर उसके लिए सभी से त्यागपत्र लेना होगा ! सभी संस्थाए बर्खास्त करनी होगी ! तभी हम समानता या बराबरी का वितरण कर पाएंगे ! क्या यह हो सकता है ?
 
इन सब बातो का कोई मतलब नहीं है ! जबतक आरक्षण को पुर्णतः से लागु नहीं किया जाता ! जबतक पिछड़े समाज को ज्यादा संधिया नहीं दी जाती तबतक हम बराबरी वाली, समानता वाली व्यवस्था नहीं ला सकते ! आरक्षण के खिलाफ बोलने के बजाय इस बराबरी को जल्द से जल्द लाने के लिए प्रयास करो ! उन्हें ज्यादा संधिया मुहय्या करने के लिए आन्दोलन करो ! पर मुझे पता है आप यह नहीं करोगे ! खैर छोड़ो ऊपर के सवालो के ही जवाब दे दो ! फिर निर्धारित करते है की आरक्षण की स्थिति क्या होनी चाहिए !
---प्रा. संदीप नंदेश्वर, नागपुर. 

1 comment:

  1. गरीबी हटाओ आन्दोलन नहीं है आरक्षण आरक्षण को समझने के लिए आरक्षण का इतिहास भी झाक लेना जरुरी है | आरक्षण की शुरूआती मांग हुई थी 1891 में | उस समय भारत में अंग्रेज राज करते थे | अंग्रेज सरकार ने कई नौकरियां निकलवाई थी लेकिन भर्ती प्रक्रिया में भारतीयों से भेदभाव के चलते सिर्फ अंग्रेजो को ही नौकरी दी जाती थी, और काबिल भारतीय नौकरी से वंचित रह जाते थे | भारतीयों ने नौकरी में आरक्षण के लिए आन्दोलन किया | भारतीयों का नौकरी में आरक्षण का आंदोलन सफल रहा और हमारे कई भाइयो को इसका फायदा हुआ | आजादी के बाद कई लोगो को इस बात का यकीं था की पिछडो के साथ भेदभाव के चलते उन्हें नौकरियों में काबिल होने के बावजूद जगह नहीं दी जाएगी, क्योकि जितना भेदभाव अंग्रेज भारतीयों से करते थे उससे कही ज्यादा भेदभाव भारतीय पिछड़ी जाती के लोगो से करते है | सवाल यह उठता है की क्या पिछड़ी जातियों के साथ भेदभाव ख़त्म हो गया है ? जवाब है नहीं | Being Indian Group ने एक सर्वे किया, जिससे पता चला की जहा गावो में यह भेदभाव स्पष्ट रूप से मौजूद है वाही शहरों में यह अदृश्य और अप्रत्यक्ष रूप से जिन्दा है वैसे दुनिया के कई देशो में आरक्षण है, पर इसका नाम अलग-अलग है | जैसे अफर्मेटिव एक्शन और पोसिटिव डिस्क्रिमिनेशन | एक बात और हमारे संविधान निर्माताओ ने आरक्षण सिर्फ ST(7%) और SC(15%) के लिए ही रखा था | लेकिन आजादी के 43 साल बाद 1990 में आए मंडल आयोग में OBC के लिए 27% आरक्षण कर दिया | आज भी देश के कायर लोग और नेता OBC का नाम लेने से डरते है, क्योकि सक्षम जातीया है भाई, आग लगा देगी | जैसे हरियाणा में लगा दी

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