आरक्षण फिल्म को लेकर काफी कुछ हंगामा हुआ ! अब पता चला की यह सब कुछ पब्लिसिटी स्टंट था ! पर इससे भी ज्यादा देश में आरक्षण को लेकर बवाल खड़ा करना था यही साबित होता है ! कमलेश पांडे के कथानक को प्रकाश झा के मसाले ने तड़का लगा दिया ! फिल्म दो विभागों में बांटी गई है ! पहला चरण जो की आरक्षण के बवाल प्रदर्शित करता है ! और दूसरा चरण जो की यहाँ की शिक्षा व्यवस्था का आइना सामने लाती है ! गरीब, पिछड़े और जरूरतमंद लोगो को शिक्षा का अवसर इस व्यवस्था ने शिक्षा के खाजगीकरण के माध्यम से रोका गया है ! इसे दर्शाते हुए समान शिक्षा और अवसर को प्रदान करने की लढाई में जित आखिर सब को सामान अवसरवाली शिक्षा व्यवस्था बनाने में होती है !
फिल्म के प्रथम चरण में इंटरव्यूव कमिटी के सामने दीपक (सैफ अली खान) कहता है, "इंटेलीजन्स और परफोर्मंस किसी ब्याकग्राउंड का मौताज नहीं होता !" यह संवाद अपने आप में काफी कुछ कह जाता है ! जो लोग आज आरक्षण का विरोध कर रहे है ! उनके लिए यह किसी तलवार से किये गए वार से कम नहीं है ! आगे दीपक (सैफ अली खान) कहता है, "जब भी हमें मौका मिला इस देश का संविधान बना डाला !" यह वाक्य तो यहाँ की मनुवादी व्यवस्था तो तारतार करते हुए जातिवाद को मीठा जहर पिलाता है ! आरक्षण को स्पर्धा के नाम से गाली देने वाले खुद स्पर्धा करने से डरते है ! "पहले प्राक्टिस तो कर लो फिर च्यालेन्ज देना" ! इस तरह के वाक्य फिल्म के माध्यम से यहाँ की मनुवादी मानसिकता को खुला च्यालेन्ज है !
फिल्म के एक गाणे में तो आरक्षण किस कदर यहाँ के गरीब, पिछड़े, और अवसरहिन् लोगो में क्रांति ला सकती है इसका सही वर्णन किया गया है !
"ज़रा पंखा तो खोल दो
फिर आसमान देखना
एक मौका तो दे दो
फिर उड़ान देखना"
हजारो सालो से अवसर से वंचित रखकर यहाके sc, st, obc लोगो के पंख कांटे गए थे ! उन्हें मौका तो दूर की बात है, हुनर आजमाने भी नहीं दिया गया ! हर तरफ से उनके प्रगति में दीवारे बनाई गई ! जिस स्थिति में पैदा हुए उसी स्थिति में मरने का फ़र्मान छोड़ने वाली यह व्यवस्था अपने आप में आरक्षण की जरूरतों को सही साबित करती है ! बिना किसी साधनों से, बिना किसी अवसर से अगर गरीब, पिछड़े वर्ग के बच्चे आगे बढ़ सकते है ! मेरिट में आ सकते है ! तो फिर सबकुछ होते हुए भी अप्पर कास्ट के वो लोग मेरिट में जगह लेने से क्यों वंचित रहते है ? ये भी अपने आप में काफी कुछ कह जाता है !
आज शिक्षा क्षेत्र एक व्यवसाय बन गया है ! एक ऐसा व्यवसाय जिसको चलने वाला समाज खुद की व्यवस्था बना रहा है ! शिक्षा को सबसे बड़ा धंदा बनाने वाली व्यवथा और सरकार जिस तरह से खाजगी लोगो के हांथो में शिक्षा संस्थओंकी खैरात बात रही है ! "पैसा होगा वही आगे बढेगा" (मनोज वाजपेई) ऐसी व्यवस्था आज क्यों बनाई गई है ? क्या हम इसे कण्ट्रोल करने में कमजोर रहे है ? या फिर हमने सरकार के प्रति अपने उत्तरदायित्व को ही भुला दिया है ! जिस शिक्षा क्षेत्र पर सबसे अधिक सरकारी धन खर्च होना चाहिए वो आज नहीं हो रहा है ! यह मौलिक बात भी इस फिल्म ने उठाई है !
खाजगी शिक्षा संस्थाए और महाविद्यालय ये सिर्फ क्या उन लोगो के लिए है ! जिनके पास अधिक धन है ! या जिनके पास ये संस्थाए है ! फिर बाकि लो ने क्या करना चाहिए ! सरकार फिर ऐसी शिक्षा संस्थाए जो सिर्फ धनि लोगो को शिक्षा का अवसर प्रदान करते है खैरात क्यों बात रही है ! "कोटे का इस्तेमाल कीजिये सरकार तो खैरात बात रही आपको" अगर हम खैरात में शिक्षा ले रहे है तो अपनी अपनी शिक्षा संस्थाए सरकार के मलिंदे पर लेकर क्या खैरात की शिक्षा ये लोग नहीं ले रहे है ? यह भी बड़ी सोचनीय बात फिल्म के द्वारा उठाई गई है !
"सरकारी इंस्टीटयूट में कोटाराज चलता है !" कितनी संस्थाए सरकार के पास बची है ? आज तो प्राथमिक शिक्षा भी सरकार के कब्जे में नहीं है ? महानगर पालिकाओंकी स्कूले हर दिन बंद होते जा रही है ? क्या यह यहाँ के बहुसंख्य लोगो को शिक्षा से वंचित रखने का और उनपर वोही हजारो सालो की गुलामी लड़ने का षड़यंत्र तो नहीं है ? इस बात का भी जिक्र मन में आ जाता है !
मनुवादी और जातिवादी मानसिकता जैसी की वैसी इस फिल्म में बताई गई है ! दो स्कुल के बच्चे रिपोर्टर को आरक्षण के बारे में इंटरव्यूव देते वक्त कहते है, "आरक्षण के माध्यम से हमारा काम अगर वो करेंगे तो उनका काम हमें करना होगा ! फिर क्या हम अभी बूटपोलिश करेंगे !" "बोरिया बिस्तर समेटिये अब इनका ही राज चलेगा !" देखो यह सवर्ण मानसिकता आरक्षण के खिलाफ बोलने वालोंकी आज भी है ! इसे इस फिल्म में दिखाकर हममे एक चेतना जगाने काही काम किया है ! इन सवर्णों को आज भी लगता है की हम लोगो ने वही काम करना चाहिए जो हमारे दादा, परदादा ने किये थे ! फिर इस स्वतंत्रता और संविधान का क्या मतलब ? ये स्वतंत्रता बहुसंख्य वर्ग के किस काम की ? आरक्षण और यहाँ की गरीबी भरी गुलामी "हजारो साल की गाली है ! हर रोज दोहराई जाती है !" आखिर कबतक सहेंगे हम ! समानता की व्यवस्था लाने में इतना डर क्यों ? "स्पर्धा होनी चाहिए पर इसके लिए एक लाइन हो जहा से वो शुरू हो !" ऐसे कई अनगिनत पैलू आरक्षण की सच्चाई को बाया करने में फिल्म के माध्यम से सहायता करते है ! अब वो देखने वाले पर निर्भर करता है ! की वो कौनसी मानसिकता लेकर जी रहा है ! आरक्षण देकर कोई सेवा नहीं की गई है ! कोई गरीबी कम नहीं हुई है ! "कम्बल बटकर आप अपने मन की गरीबी दूर कर सकते हो उनकी नहीं !" यह बात तो जातिवादी, मनुवादी, सरकार के लिए दिया गया (सैफ अली खान के जरिये) यहाँ के बहुसंख्य लोगो का करार जवाब है ?
स्वतंत्रता के ६० वर्ष बीत जाने के बाद भी वो गुलामी और विषमता भरी जातिव्यवस्था आज बदलने के लिए तैयार क्यों नहीं है ? क्योंकि प्राथमिक जरूरते और मौके से आज भी यहाँ का बहुसंख्य पिछड़ा गरीब वर्ग वंचित है ! इसलिए (अमिताभ बच्चन) कहते है, "पिछले ६० सालो में बेसिक नहीं हुआ इसलिए आरक्षण और भी जरुरी है !" फिल्म का यह संवाद ही फिल्म का निष्कर्ष बयाँ करने के लिए काफी है ! "जब कभी समाज में परिवर्तन हुआ उसकी कीमत तो चुकानी पढ़ी है !" आरक्षण एक ऐसी ही कीमत की सच्चाई को बयाँ करती है ! अगर हजारो सालो की गुलामी और विषमता दूर करना है तो आरक्षण की सच्चाई को मानना जरुरी है ! उसकी कीमत चुकानी ही होगी ! यह फिल्म "आरक्षण" की सच्चाई है !
फिर भी इस फिल्म के जरिये कुछ सवाल जो पैदा हुए है ! जो मंथन देश में शुरू हुआ है ! उसे हम नहीं भूल सकते !
१. खाजगी शिक्षा अगर यहाँ विषमता की दुरी और भी बाधा रही है तो हम उसके खिलाफ आन्दोलन क्यों नहीं करे ?
२. शिक्षा का व्यवसायीकरण रोकने के लिए समाज क्यों आगे नहीं आ रहा ?
३. क्या इस फिल्म के द्वारा बहुसंख्य वर्ग अपने हक़ के लढाई के लिए तैयार होने के बजाय घर में कम्बल ओढ़े क्यों सोया हुआ है ?
४. सरकार ने खाजगी विश्वविद्यालय का कानून पारित क्यों किया ? उसका विरोध क्यों नहीं हो रहा ?
५. गरीबो को शिक्षा से वंचित रखने वाली व्यवस्था बदलने के लिए हम सरकार को मजबूर क्यों नहीं कर रहे है ?
६. हमें सरकारे बदलने का अधिकार है या सरकार को हमें बदलने का अधिकार है ? श्यायद कुछ ऐसा ही उलटा तो नहीं हो रहा ?
७. बहुसंख्य गरीब, पिछड़े लोगो का उच्च शिक्षा का प्रतिशत दिनों दिन घटता जा रहा है ? फिर हमारी राजनीती और राजनितिक ताकत कहा खर्चा हो रही है ?
८. समाज में शिक्षा क्षेत्र को लेकर इतनी उदासी क्यों फैली हुई है ?
९. शिक्षा क्षेत्र के माध्यम से हमें लुटा जा रहा है ? हमारा आर्थिक शोषण किया जा रहा है ? फिर भी हम चुप क्यों है ?
१०. क्या भेड़ बकरियों की जिंदगी ने हमें घेर रखा है ? क्या हम मानव कम और शैतान ज्यादा बन रहे है ?
यह सभी सवाल अब हमें खुद से, सरकार से, शिक्षा व्यवस्था से पूछने होंगे ! "आरक्षण" फिल्म ने यह सभी सवाल अब आप के सामने खड़े किये है ! अब आप को सोचना है की किस व्यवस्था में जीना है ? किसे बदलना है ?
---प्रा. संदीप नंदेश्वर, नागपुर.
lack of communication and media is not supportive to sc st and obc
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