बागों की परिया
बागों की परिया यु न मुस्कुराती
खिलते आसमान में पंख न लहराती
तितलियोंसी न बसती फूलोंकी सेज पर
गर मेरे आँगन में फूलों की बगीयाँ न होती
खिलती मुस्कुराती कहती है परिया
गर हम न होती तो न होती यह दुनिया
जीवन में तुम्हारे यु फूलोंकी खुशबू न होती
गर तेरे घर आँगन में नन्ही परियां न होती
---डॉ. संदीप नंदेश्वर, नागपुर.
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