Sunday 26 January 2014

सिर्फ सत्ता बदलने से परिवर्तन नहीं होता !

लीबिया में गद्दाफी के हुकुमतंत्र को बदलकर लोकतंत्र लाने के लिए आन्दोलन खड़ा किया गया ! और गद्दाफी को फांसी पर लटकाकर लोकतंत्र की नीव रखी गई !

आज भारत में अरविंद केजरीवाल का हुकुमतंत्र देश के लोकतंत्र के खिलाफ आग उगल रहा है ! सड़क छाप आन्दोलन हो या खुद को Anarchist कहने की बात हो यही जाहिर होता है की लोकतंत्र के खिलाफ आने वाले दिनों में जो आन्दोलन खड़ा होगा उसकी नीव अरविन्द केजरीवाल के माध्यम से रखी जा रही है ! देश की जनता को मुर्ख बनाकर कुछ पार्टिया लोकतंत्र का आधार लिए केजरीवाल पर टिपण्णी जरूर कर रहे है ! लेकिन अन्दर से केजरीवाल को मदत भी कर रही है ! क्योंकि इस देश से लोकतंत्र को ख़त्म करना जिनका उद्देश है उनके लिए केजरीवाल एक नए परिवेश में जमीन तैयार करने का काम कर रहे है !
सोच में फर्क हो सकता है लेकिन वास्तविकता में नहीं !


जब दिल और दिमाग काम करना बंद कर दे तो इन्सान दूसरो की बुरोइयो में लुप्त होकर बुनियादी तत्व को अक्सर भूल जाते है !और अविचारी निति सामने आने लगती है ! जो आजकल केजरीवाल के साथ हो रही है ! और उनके समर्थक भी उसी दिशा में अग्रेसर हो रहे है ! केजरीवाल बुनियादी बातो को दोहरा तो रहे है लेकिन उन बुनियादी बदलाव को आम जनता से दूर ही रख रहे है ! 2+2=4 बोलो या 1+3=4 बोलो ! बात तो एक ही है ! और हल भी एक ! बदलाव उसे कहते है जिसमे 4+4=8 किया जाये !

सत्ता परिवर्तन होता है ! लोग सिर्फ सत्ता परिवर्तन ही चाहते है ! केजरीवाल आने से सत्ता परिवर्तन हुआ ! व्यवस्था परिवर्तन नहीं ! और लोगो के जीवनकाल में कोई परिवर्तन नहीं ! यही सोच आज देश के सामने गंभीर समस्या बन कर उभर रही है ! सिर्फ सत्ता परिवर्तन होने से बदलाव नहीं होता ! संवैधानिक संस्कृति की नीव में पलने वाली विचारधारा के संचलन में जबतक उस संकृति और विचारधारा से ताल्लुक रखनेवाले नहीं होंगे ! तबतक देश किसी भी बदलाव या परिवर्तन की दिशा में अग्रसर नहीं होगा !

सिर्फ सत्ता बदलने से परिवर्तन नहीं होता ! असल में परिवर्तन के लिए सत्ता में बैठे लोगो की विचारधारा बदलनी चाहिए ! वरना हम जहा थे वही पर रुक जायेंगे ! गुलाम को तो खैर गुलामी की आदत पड़ चुकी होती है ! इसलिए उनके लिए कोई नयी मुसीबत नहीं होगी ! हाँ ! लेकिन जिन लोगो को लग रहा है की वो सुरक्षित रहेंगे उनको आने वाली गुलामी से डरने की ज्यादा जरुरत है !

"लंगूर के हाथ में अंगूर" कुछ ऐसी ही परिस्थितिया आज कल दिल्ली में चल रही है ! दिल्ली वाले आज खुद को कोस रहे होंगे की हमने किस बला को दिल्ली में राज करने का मौका दिया है ! जिनकी खुद की संस्कृति विनाशकारी होती है वो राजनितिक संस्कृतिको भी विनाशकारी बना देते है !@ जिसका खूब नमूना "आप" के माध्यम से केजरीवाल दिल्ली और देश के सामने ला रहे है ! लोकतंत्र की राजनितिक संस्कृति जिन्हें मान्य नहीं, जिन्होंने आज तक लोकतंत्र को ही माना नहीं वो "आप" और "कजरी" भक्त इस बात को नहीं समझ सकते. लेकिन देश देख भी रहा है और समझ भी रहा है ! "आप" का "बाप" जनता इतनी बुद्धू है यह समझने की गलती न करे !


---डॉ. संदीप नंदेश्वर, नागपुर.

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