मिडिया हमारे समाज का दुश्मन
इस देश के (ना)लायक मिडिया ने फिर एक बार दिखाया है की, वो यहाँ के
परिवर्तनवादी आन्दोलन का कितना बड़ा दुश्मन है ! जबकभी डॉ. बाबासाहब
आम्बेडकर जी के विडंबन या अपमान का मुद्दा उठाया जाता है, उस समय यह मिडिया
प्यानिक होकर बाबासाहब और बुद्ध के शांति के मार्ग को ढाल बनाकर
क्रांतिकारी आंबेडकरी आन्दोलन को कटघरे में खड़े कर लेते है ! शांति, सदाचार
और कानून का हवाला देकर कानून के रक्षक
ही (आंबेडकरी समाज) कानून थोडते है, ऐसा आरोप लगते है ! पर बार बार
बाबासाहब को बदनाम और अपमानित करने वाली समाजव्यवस्था और मानसिकता के खिलाफ
एक लब्ज भी नहीं निकालती ! मैंने अपने कुछ साथियों को साथ में लेकर जब
पहली बार एनसीईआरटी के किताब के कार्टून पर आन्दोलन किया था तब पुरे मिडिया
का आमंत्रित किया था ! सब मिडिया के लोग वह आकर सिर्फ हमारा तमाशा देख कर
गए ! इतना अपमानित मुद्दा वो भी केंद्र सरकार से जुड़ा होने के बावजूद भी
किसी भी मिडिया ने उस खबर को नहीं प्रसारित किया ! (लोकमत को छोड़कर) बाद
में यह मुद्दा संसद के सामने आया उस दिन भी नागपुर के सभी मिडिया को यह
मालूम था की यह मुद्दा मैंने उठाया था ! फिर भी किसी ने मुझसे संपर्क कर इस
आन्दोलन के असलियत के बारे में जानने की कोशिश नहीं की !(कुछ स्थानीय
मिडिया छोड़कर) क्योंकि उन्हें पता था की अगर मै मिडिया के जरिए इस आन्दोलन
की सच्चाई लोगो के सामने रखता तो आज मिडिया इस आन्दोलन के बारे में जो
नकारात्मक लिख रहा है वो काश नहीं होता ! इसलिए जिन लोगो को इस विषय के
बारे में कुछ भी मालूम नहीं ऐसे तथाकथित लोगो को लेकर चर्चा की गई ! जिसके
कारण लोगो तक सच्चाई नहीं जा सकी ! आज जो संभ्रम बनाया जा रहा है वो यहाँ
की मनुवादी मानसिकता का असली परिचय है !(कुछ अपने भी शामिल है) ऐसे वक्त
हमें सोचना होगा !
क्या सही मायने में आज भारत में बसा मिडिया लोकतंत्र
का हिस्सा हो सकता है ? क्या मिडिया समाज का आइना बन पाया है ? क्या यह
मिडिया यहाँ की सामाजिक व्यवस्था का असली मनुवादी चेहरा नहीं है ? क्या यह
मिडिया हमारे समाज का दुश्मन नहीं है ?
भारत के बर्बादी का असली कारण और भारत के विकास के मार्ग में सबसे बड़ी रुकावट भ्रष्टाचार न होकर यहाँ का मिडिया है !!!!!!!!!!
क्या ऐसे मिडिया को जड़ से उखाड़ने के लिए हमें अण्णा से बड़ा जनतांत्रिक
आन्दोलन यहाँ के दबे कुचले और पीड़ित बहुसंख्य लोगो को साथ में लेकर खड़ा
नहीं करना चाहिए ?????????
-------डॉ. संदीप नंदेश्वर, नागपुर.
इस देश के (ना)लायक मिडिया ने फिर एक बार दिखाया है की, वो यहाँ के
परिवर्तनवादी आन्दोलन का कितना बड़ा दुश्मन है ! जबकभी डॉ. बाबासाहब
आम्बेडकर जी के विडंबन या अपमान का मुद्दा उठाया जाता है, उस समय यह मिडिया
प्यानिक होकर बाबासाहब और बुद्ध के शांति के मार्ग को ढाल बनाकर
क्रांतिकारी आंबेडकरी आन्दोलन को कटघरे में खड़े कर लेते है ! शांति, सदाचार
और कानून का हवाला देकर कानून के रक्षक
ही (आंबेडकरी समाज) कानून थोडते है, ऐसा आरोप लगते है ! पर बार बार
बाबासाहब को बदनाम और अपमानित करने वाली समाजव्यवस्था और मानसिकता के खिलाफ
एक लब्ज भी नहीं निकालती ! मैंने अपने कुछ साथियों को साथ में लेकर जब
पहली बार एनसीईआरटी के किताब के कार्टून पर आन्दोलन किया था तब पुरे मिडिया
का आमंत्रित किया था ! सब मिडिया के लोग वह आकर सिर्फ हमारा तमाशा देख कर
गए ! इतना अपमानित मुद्दा वो भी केंद्र सरकार से जुड़ा होने के बावजूद भी
किसी भी मिडिया ने उस खबर को नहीं प्रसारित किया ! (लोकमत को छोड़कर) बाद
में यह मुद्दा संसद के सामने आया उस दिन भी नागपुर के सभी मिडिया को यह
मालूम था की यह मुद्दा मैंने उठाया था ! फिर भी किसी ने मुझसे संपर्क कर इस
आन्दोलन के असलियत के बारे में जानने की कोशिश नहीं की !(कुछ स्थानीय
मिडिया छोड़कर) क्योंकि उन्हें पता था की अगर मै मिडिया के जरिए इस आन्दोलन
की सच्चाई लोगो के सामने रखता तो आज मिडिया इस आन्दोलन के बारे में जो
नकारात्मक लिख रहा है वो काश नहीं होता ! इसलिए जिन लोगो को इस विषय के
बारे में कुछ भी मालूम नहीं ऐसे तथाकथित लोगो को लेकर चर्चा की गई ! जिसके
कारण लोगो तक सच्चाई नहीं जा सकी ! आज जो संभ्रम बनाया जा रहा है वो यहाँ
की मनुवादी मानसिकता का असली परिचय है !(कुछ अपने भी शामिल है) ऐसे वक्त
हमें सोचना होगा !
क्या सही मायने में आज भारत में बसा मिडिया लोकतंत्र
का हिस्सा हो सकता है ? क्या मिडिया समाज का आइना बन पाया है ? क्या यह
मिडिया यहाँ की सामाजिक व्यवस्था का असली मनुवादी चेहरा नहीं है ? क्या यह
मिडिया हमारे समाज का दुश्मन नहीं है ?
भारत के बर्बादी का असली कारण और भारत के विकास के मार्ग में सबसे बड़ी रुकावट भ्रष्टाचार न होकर यहाँ का मिडिया है !!!!!!!!!!
क्या ऐसे मिडिया को जड़ से उखाड़ने के लिए हमें अण्णा से बड़ा जनतांत्रिक
आन्दोलन यहाँ के दबे कुचले और पीड़ित बहुसंख्य लोगो को साथ में लेकर खड़ा
नहीं करना चाहिए ?????????
-------डॉ. संदीप नंदेश्वर, नागपुर.
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