मुस्लिम
आरक्षण हमारा अधिकार
यहाँ की सांप्रदायिक ताकते हमेशा इस
देश के अल्पसंख्यक और मागासवर्ग समुदाय के खिलाफ काम करती रहती है ! इस देश का दुर्भाग्य
यही है की, दुनिया का सर्वोच्च समतावादी संविधान भारत के पास होने के बावजूद भी यहाँ
की हिन्दू साम्प्रदायिकता समाज के अल्पसंख्यक और मागासवर्ग समुदाय के विकास में रोड़ा
डालने का प्रयास करते रहते है ! इसी का एक नमूना आँध्रप्रदेश के उच्च न्यायलय के मुस्लिम
आरक्षण के सन्दर्भ में दिए गए फैसले के बाद सामने आया है !
जबकी,
सच्चर कमीशन की रिपोर्ट के तहत अल्पसंख्यक
वर्ग के सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक विकास को ध्यान में रखकर केंद्रसरकार ने ४.५ % प्रतिशत
आरक्षण की घोषणा कर दी गई थी ! इसी कड़ी में वह आरक्षण मुस्लिम समुदाय के लिए भी दिया
गया ! लेकिन इस निर्णय के खिलाफ आँध्रप्रदेश बी सी वेलफेअर असोसिएशन के अध्यक्ष आर.
क्रुशनैय्या इन्होने उच्च न्यायलय में एक जनहित याचिका दायर की थी ! इस केस की सुनवाई
करते हुए मा. उच्च न्यायलय ने यह निर्णय दिया की, "यह आरक्षण संविधान के विरुद्ध
होने के कारण ख़ारिज कर दिया जाता है !" मा. न्यायाधीश मदन बी. लोकुर और
पि.व्ही. संजय कुमार इनके बेंच ने अपना निर्णय देते हुए कहा की, "केंद्र सरकार
का अल्पसंख्यक वर्ग को दिया जाने वाला आरक्षण धर्म के आधार पर था ! यह निर्णय लेते
वक्त किसी भी संवैधानिक नियमो को ध्यान में नहीं रखा गया !"
अब....
सवाल यह है की,
सवाल यह है की,
आज तक इस देश में अल्पसंख्यक वर्ग के
सामाजिक, आर्थिक विकास के लिए कई कमीशन गठित किये गए ! जिन्होंने अपने रिपोर्ट में
इस वर्ग के सामाजिक, आर्थिक विकास के लिए आरक्षण दिए जाने की शिफारिश की थी ! और आज
अगर अल्पसंख्यक वर्ग को आरक्षण देने की बात केंद्रसरकार कर रही है ! तो उच्च न्यायलय
ने इसे किस बुनियाद पर असंवैधानिक घोषित किया है ? क्या अल्पसंख्यक यह धर्म है ? या
फिर संवैधानिक वर्ग ? अगर अल्पसंख्यक वर्ग यह संवैधानिक वर्ग है तो फिर अल्पसंख्यक
वर्ग के में आने वाले सभी धर्म इस के हक़दार हो सकते है ! फर्क बस इतना है की, जो अल्पसंख्यक
समुदाय सामाजिक, और आर्थिक बराबरी की तुलना में फीछे होता है ! उसे बराबरी की व्यवस्था
में लाने के लिए संवैधानिक नियमो को लेकर ही आरक्षण दिया जाता है ! सामाजिक-आर्थिक
गैर बराबरी की व्यवस्था को बराबरी पर लाने के लिए ही तो आरक्षण दिया गया है ! और यह
संविधान के तहत ही है ! फिर भी उच्च न्यायलय इसे गैर संवैधानिक क्यों घोषित करता है
? क्या न्यायव्यवस्था आज हमारे समाज के विकास के लिए गैरजिम्मेदाराना हो गई है ? अल्पसंख्यकोंके
आरक्षण को धर्म के नाम पर ख़ारिज करना न्यायव्यवस्था की धार्मिक और जातीय मानसिकता को
उजागर नहीं करता ? न्यायलय के इस गैरजिम्मेदाराना दलील से न्यायव्यवस्था में भी सभी
वर्ग के, धर्म के लोगो को समान तौर आरक्षण की जरुरत को महसूस नहीं कराता ?
हमारी
मित्र फरहाना अंसारी जी की यह दलील भी उतनीही सटीक है,
वो
कहती है,
"सवाल उठता है अल्पसंख्यक आरक्षण
को "मुस्लिम आरक्षण" कैसे बनाया गया ? अगर वो अल्पसंख्यक आरक्षण है तो मुस्लिम
आरक्षण क्यों बताया जा रहा है ?"
इसका एकमात्र कारण यह है की, आज न्यायव्यवस्था
में जो धर्म के ठेकेदार बैठे हुए है, वो सांप्रदायिक ताकतों के शिकार है ! और फिर उनसे
और उम्मीद भी क्या की जा सकती है ! यहाँ के पिछड़े वर्ग के उत्थान के लिए, उनके अधिकारों
के लिए यहाँ की सांप्रदायिक ताकते कभी भी अनुकूल नहीं रही है ! इतनाही नहीं तो इन्ही
सांप्रदायिक ताकतों के ठेकेदार न्यायव्यवस्था में न्यायाधिशोंके पदों पर विराजमान है
! इसीलिए ऐसे पिछड़े और अल्पसंख्यक समुदायोंके उत्थान के लिए किसी भी सरकार के निर्णयों
को न्यायपालिका ख़ारिज कर देती है !
हालाकि
आज की वास्तविकता यह दर्शाती है की,
आरक्षण के नाम पर दिया जाने वाला अधिकार
फिर वो नौकरी में, शिक्षा में और पदोन्नति में हो ऐसे महत्वपूर्ण निर्णयोंको न्यायव्यवस्था
असंवैधानिक करार देते हुए ख़ारिज कर देती है ! ऐसे कई न्यायव्यवस्था के निर्णय आये दिन
देखने को मिल रहे है ! जिस आरक्षण के तत्व को बचाने की और उसे सुचारू रूप से कार्यान्वित
करने की सरकार और प्रशासन की पहल पर नियंत्रण रखने का कम न्यायव्यवस्था को करना चाहिए
! वही न्यायव्यवस्था आज आरक्षण को ख़त्म करने पर लगी हुई है ! और गैरबराबरी की इस व्यवस्था
को और भी मजबूत बनाने में अप्रत्यक्ष रूप से काम कर रही है !
कुछ
इसके ऊपर भी सोचना चाहिए !
अगर अल्पसंख्यक वर्ग में मुस्लिम वर्ग
को दिया जाने वाला आरक्षण धार्मिक है ? तो फिर.....
क्या
OBC वर्ग को दिया जाने वाला आरक्षण धार्मिक नहीं है ?
क्या
मराठा आरक्षण की दलील धार्मिक नहीं है ?
क्या
sc/st और मागास वर्ग को दिया जाने वाला आरक्षण धार्मिक नहीं है ?
अगर यह सभी अंग हिन्दू धर्म के होने
के बावजूद अगर आरक्षण के लिए पात्र हो सकते है, तो फिर मुस्लिम समुदाय और बौद्ध समुदाय
जैसे अन्य कई पिछड़े अल्पसंख्यक समुदाय आरक्षण के लिए पात्र क्यों नहीं हो सकते ? मुस्लिम
समुदाय के आरक्षण में ही धर्म आड़े कैसे आता ? इसपर गहराई से सोचे तो यह देखने को मिलता
है की, आज आरक्षण के नाम पर इन सभी पिछड़े समुदायोंको और अल्पसंख्याकोंको रोका गया है
! और असली ५० % प्रतिशत आरक्षण यहाँ का १५ % प्रतिशत कहलाने वाला वर्ग उसमे भी ३ %
ब्राम्हण वर्ग ले रहा है ! आज न्यायपालिका के न्यायाधीश कौन है ? देश में सबसे ज्यादा
संख्या में आई ए एस अधिकारी कौन है ? उच्च पदों पर विराजमान लोग किस धर्म और जाती का
प्रतिनिधित्व कर रहे है ? २००१ की रिपोर्ट तो यह कहती है की, प्रथम और द्वितीय वर्ग
श्रेणी की ९६ % प्रतिशत जगह पर यही लोग बैठे हुए है ! जबकि ८५ प्रतिशत समाज का प्रतिनिधित्व
सिर्फ ४ % प्रतिशत लोग कर रहे है ! या कौन सा आरक्षण है ? यह कौन सी संवैधानिक निति
है ?
आरक्षित वर्ग को आरक्षण के नाम पर रोका
जाये ! और बिना आरक्षित समुदायोंके लोगो को सत्ता और प्रशासन के सभी विभागों में बिठाया
जाये ! आरक्षण के नाम पर यह यहाँ के बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक वर्गो के अधिकारों के
साथ खिलवाड़ नहीं है ? न्यायव्यवस्था इस गैरसंवैधानिक नियुक्तियोमे अपनी राय क्यों नहीं
देती ? इस गैरबराबरी की नियुक्तियोंको ख़ारिज करने में न्यायपालिका क्यों ध्यान नहीं
देती ? लेकिन आरक्षित वर्ग के लोगो की बात आती है तो संविधान को आगे कर हमारे अधिकारोंको
रोकने का प्रयास जरुर किया जाता है ?
इसके लिए हमें सोचना पड़ेगा ? समझना पड़ेगा
? और सतर्क होना पड़ेगा ?
पिछले दिनों १६ अप्रैल २०१२ को मुस्लिम
आरक्षण के विरोध में "एस सी / एस टी / ओ बी सी आरक्षण बचाओ ! मुस्लिम आरक्षण हटाओ
!" का नारा देकर विश्व हिन्दू परिषद् ने पुरे भारत में विरोध प्रदर्शन का कार्यक्रम
किया था ! आरक्षण के मुद्दे को सामने रखकर यहाँ एस सी / एस टी / ओ बी सी और मुस्लिम
समुदायोंके बिच सांप्रदायिक संघर्ष को जन्म देना ही इनका एकमात्र उद्देश था ! क्योंकि
इनके हिन्दू राष्ट्र के निर्माण के सपने को साकार करने के लिए ऐसी हिन्दुत्ववादी सांप्रदायिक
ताकते यहाँ सांप्रदायिक संघर्ष जन्म देना चाहती है ? जिसके शिकार होकर लोग एक दुसरे
के विरुद्ध खड़े हो जाते है ! सरकार ऐसी गतिविधियों पर नियंत्रण नहीं लगाती ! बल्कि
संविधान प्रेमी यहाँ के परिवर्तनवादी आंदोलनों को दबाने का हरवक्त प्रयास करते रहती
है !
आज जरुरत है की, .............
मुस्लिम समुदाय गरीबी, अशिक्षा, संधिया
और विकास से वंचित है ! इस समुदाय के सर्वांग विकास के लिए आज इन्हें आरक्षण देना जरुरी
हो गया है ! और उसके लिए मुस्लिम आरक्षण की घोषणा काफी कारगर सिद्ध हो सकती थी ! लेकिन
आँध्रप्रदेश उच्च न्यायलय के इस निर्णय ने इस बड़ी पहल पर पानी फेर दिया है !
इसलिए.....
मेरी परिवर्तन वादी आन्दोलन और आंबेडकरवादी
आन्दोलन से जुड़े हर संस्था / संगठन और व्यक्ति से यह गुजारिश है की, यहाँ के मुस्लिम
समुदाय के संवैधानिक आरक्षण के लिए एक होकर लढना चाहिए ! जैसे ओ बी सी आरक्षण को दिलाने
के लिए यहाँ के परिवर्तनवादी आन्दोलन और खास कर आंबेडकरवादी आन्दोलन ने महत्वपूर्ण
भूमिका अदा की थी ! उसी तरह आज मुस्लिम आरक्षण के लिए हमें सामने आकर हमारे मुस्लिम
भाइयोंको संवैधानिक आरक्षण देने के लिए काम करना होगा ! यहाँ का कोई भी मुस्लिम किसी
भी संवैधानिक अधिकारोंसे वंचित न रहे इसके लिए हमें काम करना होगा ! और उन्हें उन अधिकारोंसे
वंचित रखने वाले सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ आवाज उठानी होगी ! तभी इस देश की धर्मनिरपेक्षता
की लाज को हम बचा सकेंगे और गैर बराबरी की इस व्यवस्था को बराबरी पर लाने की हमारी
कोशिश कामयाब हो सकती है !
--------"जय भीम"---------------------
-------------आपका--------------------
----डॉ. संदीप नंदेश्वर, नागपुर. मो. न. 9226734091
----डॉ. संदीप नंदेश्वर, नागपुर. मो. न. 9226734091