Friday, 9 March 2012

बी एस पी की जित गुजरात से ?


बी एस पी की जित गुजरात से ?

मायावती के कार्यकर्ता आज भी ये मानने के लिए तैयार नहीं है की, बी एस पी ने उत्तर प्रदेश के आम चुनाव में जो प्रदर्शन दिखाया है वो पिछले ५ सालो में किये गए राजनीती का ही परिणाम है ! दलित राजनीती कभी भी इस देश के सत्ता पर बनी रहने की अपेक्षा नहीं की जा सकती. पर मायावती और उनके कार्यकर्ता इस भूल में थे की उनकी सत्ता फिर एक बार कमाल कर जाएगी ! वो कमाल हो भी सकता था अगर आम्बेद्कारी सिद्धांतो पर मायावती और उनकी बी एस पी ने काम किया होता ! भारत में शोषित और पीड़ित समाज के हाथ में बार बार सत्ता आएगी ये न समझे ! इस बार उत्तर प्रदेश में हार का और एक चिंतन है !
उत्तर प्रदेश के बी एस पी कार्यकर्ता बामसेफ को गालिया मारते है ! और महाराष्ट्र के बामसेफ के कार्यकर्ता बी एस पी को गला तोड़ कर समर्थन करते है ! यह कैसी विडम्बना है इसका जवाब महाराष्ट्र के बामसेफ कार्यकर्ता और उत्तर प्रदेश के बी एस पी कार्यकर्ता ने देना चाहिए !
२००७ में उत्तर प्रदेश के आम चुनाव में २०६ सीटो के साथ बहुमत मिला था ! उस चुनाव में गुजरात के नरेन्द्र मोदी उत्तर प्रदेश में बी जे पी के चुनावी सभाओ में आये थे ! नरेन्द्र मोदी उत्तर प्रदेश में बी जे पी के उम्मीदवारों का प्रचार कर रहे थे ! और बहुमत से जित हुई बी एस पी के उम्मीदवारों की ! उत्तर प्रदेश में ५ सालो के लिए सत्ता बी एस पी के हाथो में देकर नरेन्द्र मोदी चले गए ! उसके बाद मौका मिला मायावती को क्योंकि उत्तर प्रदेश के चुनाव के बाद गुजरात विधिमंडल का चुनाव हुआ ! उसमे मायावती बी एस पी के उम्मीदवारों के प्रचारों के लिए गुजरात में गई ! वह पर कुछ जगह तो बी जे पी के उम्मीदवारों को समर्थन भी दे दिया ! उस समय मायावती और नरेन्द्र मोदी एक ही सभा मंडप के निचे आये थे ! ये असलियत थी अहसान चुकाने की और उसी चुनाव में गुजरात में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्वा में बी जे पी के हाथ में सत्ता आयी ! इसका सही मतलब यह है की नरेन्द्र मोदी उत्तर प्रदेश गए थे बी एस पी की सरकार बनाने और मायावती गुजरात गई थी नरेन्द्र मोदी की सरकार बनाने !
उसी का नतीजा यह हुआ की इस बार बी जे पी ने नरेन्द्र मोदी को उत्तर प्रदेश के चुनावी सभाओ में प्रचार के लिए आमंत्रित नहीं किया ! और उसका सही नतीजा यह हुआ की बी एस पी ८० सीटो पर ही सिमित हो गई ! मायावती का यह असली चेहरा आज भी बी एस पी के कर्यकर्तओंके नजर में क्यों नहीं आ रहा ? सत्ता आने के बाद भी अगर परिवर्तन नहीं हो सकता तो क्या हम बार बार सत्ता के सपनों में समाज को डालकर परिवर्तन के लिए इंतजार के अलावा और कुछ नहीं दे सकते ! भाइयो आम्बेद्कारी आन्दोलन मौके की तलाश में होते है और जब भी मौका मिलाता है तब यह आन्दोलन अपने सिद्धांतो पर व्यवस्था निर्माण का प्रयास करता है ! बी एस पी और मायावती ने यह क्यों नहीं किया ? परिवर्तन के लिए क्या ५० साल हाथ ने सत्ता चाहिए क्या ? इसका जवाब आप सभी मायावती के भाइयो और कांशीराम के कर्यकर्तओंसे आज मै पूछना चाहता हु ?
---डॉ. संदीप नंदेश्वर, नागपुर...८७९३३९७२७५

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