शिक्षा के बाजारीकरण में प्रधानमंत्री का बचपना...
प्रातिनिधिक शिक्षण दिन के शुभ अवसर पर देश के प्रधानमंत्री ने पुरे देश को स्कुली बच्चो और शिक्षको को संबोधित किया ! सब ने खुद को बडा हि गौरवांकित महसूस किया ! क्योकी ये देश में पहली बार हो रहा था ! जबाबदेही और आम जनता से संवाद करने वाली सरकार की इस पहल का मै स्वागत करता हु !
लेकिन स्कूली बच्चो और शिक्षकों के साथ प्रधानमंत्री महोदय का उनके बचपन के दिनों का हुआ वार्तालाप क्या देश के बिघडते शिक्षा स्तर को सुधार पाएगा ! शिक्षक दिन के अवसर पर अपने बचपने में खोये हुए हमारे मा. प्रधानमंत्री जी का यह वार्तालाप उतनाही बचपना भरा हुआ ! हमें अपेक्षाए थी, इस देश के ७५ % गरीब बच्चो को अपेक्षाए थी, शिक्षा के बढ़ते हुए बाजारीकरण से निजात पाने के लिए स्कुल और पढाई छोडने की कगार पर खड़े बच्चो को अपेक्षाए थी की प्रधानमंत्री जी शिक्षा के ऊपर होनेवाले सरकारी खर्चे में बढ़ोतरी करेंगे ! अपेक्षा ये थी की प्रायवेट स्कूलों की बढती हुई फी के कारन समाज का बहोत बड़ा तबका शिक्षा से वंचित हो रहा है ! उससे निजात पाकर सबके लिए शिक्षा के धोरण में कुछ बदलाव आकर प्रायवेट स्कुल मालिको में लगाम लगाई जाएगी ! शिक्षा के बाजारीकरण से परेशांन शिक्षको को उनके Management के मानसिक और गुलामिक व्यवस्था से दूर कर कुछ नई उम्मीद देश का प्रधानमंत्री देगा ! पर यह सबकुछ हशियाने पे रखकर सिर्फ खुद की प्रवृत्ती उभरते हुए भारत पर लादने का प्रयास किया गया ! जो की निसंदेह सराहनीय नहीं कहा जा सकता ! देश के प्रधानमंत्री देश में चल रही शिक्षा व्यवस्था और समाज में शिक्षा से दूर हो रहे बढ़ते प्रमाण के बारे में कोई अंदाजा नहीं है ! बस अपनी प्रवृत्ती और प्रकृती को किसी भी हालात में देश के जनमन पर लादना अपनी हुकुमियत और हुकूमत के माध्यम से तानाशाही के तरफ बढ़ते कदम का एक प्रतिक ही माना जायेगा !
देश की सरकार के ऐसे जनता से संवाद भरे आयोजनों का भविष्य में भी स्वागत रहेगा ! पर तानाशाही के पैर फ़ैलाने की लिए नहीं बल्कि असलियत को समझकर देश को सही राह दिखाने के लिए वह आयोजन होना चाहिए !
भारत सरकार के लिए मै समझता हु की मेरी प्रतिक्रिया उन तमाम देशवासियों की है जो शिक्षा के बाजारीकरण से तंग आकर इस प्रायवेट शिक्षा प्रणाली को ख़त्म कर शिक्षा के माध्यम से विकास की एक नई ऊंचाई को नापना चाहते है !
धन्यवाद् !
---डॉ. संदीप नंदेश्वर, भारीप. नागपुर.
प्रातिनिधिक शिक्षण दिन के शुभ अवसर पर देश के प्रधानमंत्री ने पुरे देश को स्कुली बच्चो और शिक्षको को संबोधित किया ! सब ने खुद को बडा हि गौरवांकित महसूस किया ! क्योकी ये देश में पहली बार हो रहा था ! जबाबदेही और आम जनता से संवाद करने वाली सरकार की इस पहल का मै स्वागत करता हु !
लेकिन स्कूली बच्चो और शिक्षकों के साथ प्रधानमंत्री महोदय का उनके बचपन के दिनों का हुआ वार्तालाप क्या देश के बिघडते शिक्षा स्तर को सुधार पाएगा ! शिक्षक दिन के अवसर पर अपने बचपने में खोये हुए हमारे मा. प्रधानमंत्री जी का यह वार्तालाप उतनाही बचपना भरा हुआ ! हमें अपेक्षाए थी, इस देश के ७५ % गरीब बच्चो को अपेक्षाए थी, शिक्षा के बढ़ते हुए बाजारीकरण से निजात पाने के लिए स्कुल और पढाई छोडने की कगार पर खड़े बच्चो को अपेक्षाए थी की प्रधानमंत्री जी शिक्षा के ऊपर होनेवाले सरकारी खर्चे में बढ़ोतरी करेंगे ! अपेक्षा ये थी की प्रायवेट स्कूलों की बढती हुई फी के कारन समाज का बहोत बड़ा तबका शिक्षा से वंचित हो रहा है ! उससे निजात पाकर सबके लिए शिक्षा के धोरण में कुछ बदलाव आकर प्रायवेट स्कुल मालिको में लगाम लगाई जाएगी ! शिक्षा के बाजारीकरण से परेशांन शिक्षको को उनके Management के मानसिक और गुलामिक व्यवस्था से दूर कर कुछ नई उम्मीद देश का प्रधानमंत्री देगा ! पर यह सबकुछ हशियाने पे रखकर सिर्फ खुद की प्रवृत्ती उभरते हुए भारत पर लादने का प्रयास किया गया ! जो की निसंदेह सराहनीय नहीं कहा जा सकता ! देश के प्रधानमंत्री देश में चल रही शिक्षा व्यवस्था और समाज में शिक्षा से दूर हो रहे बढ़ते प्रमाण के बारे में कोई अंदाजा नहीं है ! बस अपनी प्रवृत्ती और प्रकृती को किसी भी हालात में देश के जनमन पर लादना अपनी हुकुमियत और हुकूमत के माध्यम से तानाशाही के तरफ बढ़ते कदम का एक प्रतिक ही माना जायेगा !
देश की सरकार के ऐसे जनता से संवाद भरे आयोजनों का भविष्य में भी स्वागत रहेगा ! पर तानाशाही के पैर फ़ैलाने की लिए नहीं बल्कि असलियत को समझकर देश को सही राह दिखाने के लिए वह आयोजन होना चाहिए !
भारत सरकार के लिए मै समझता हु की मेरी प्रतिक्रिया उन तमाम देशवासियों की है जो शिक्षा के बाजारीकरण से तंग आकर इस प्रायवेट शिक्षा प्रणाली को ख़त्म कर शिक्षा के माध्यम से विकास की एक नई ऊंचाई को नापना चाहते है !
धन्यवाद् !
---डॉ. संदीप नंदेश्वर, भारीप. नागपुर.